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जैनत्व जागरण...
किसी धर्म से सम्बन्धित नहीं हो सकती । मार्शल के अनुसार जैन स्थल तक्षशिला का स्तूप जिसको इतिहासकार 'दो सिरोंवाला बाज मन्दिर' ‘Shrine of the double Headed Eagle' कहते हैं, बेबीलोन के प्राचीन बाज प्रतीक से मेल खाता है ।
"If the comparison drawn by Marshall between the edifice and those occuring on Jain Ayag patt from Mathura has any real significance, the eagle here may be recognised as either a formalised congnisance of the fourteenth Tirthankar Anantnatha..." (P.C. Dasgupta).
इतिहासकार ईसा पूर्व ३००० वर्षो से भारत और बेबीलोन के सम्बन्धों को मानते हैं | Indian Merchants establish Colonies in ur, Kish and Aprachiya...(S.R. Rao, Dawn and Devolution of Indus Valley civilisation Pg. 15) मैगस्थनीज, एरियन, टोलमी आदि के वर्णनों से यह स्पष्ट है कि दक्षिण भारत निर्ग्रन्थ धर्म के केन्द्र स्थल था । अतः दक्षिण भारत और बेबीलोन का सम्बन्ध दोनों संस्कृतियों की समानता का प्रतीक कहा जा सकता है । The excavation of Ur dating back 7th and 6th century B.C. revealed Amazonite beeds which could only come from Nilgiri Hills of South India. It appears that the relations between Babylone and the coast of India were intimate from the earliest time. मिस्त्र की प्राचीन हीरोलिपिक सुमेरियन फिनिशियन तथा यूनानी लिपि की भारतीय ब्राह्मी लिपि से समानता है । डॉ. बुलर आदि अनेक लेखकों की भ्रम मूलक धारणाओं को खंडित कर रायबहादुर पं. गौरीशंकर ओझा ने ब्राह्मी लिपी को सबसे प्राचीन सिद्ध किया है । जैन साहित्य में ब्राह्मी लिपि के विषय में कहा गया है कि श्री ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को दाहिने हाथ से जो १८ लिपियाँ सिखाई थी उनमें प्रथम ब्राह्मी लिपि थी ।
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स्मारक और साहित्य परम्परा का धनी : जैनधर्म
पोप के पुस्तकालय के एक Latin आलेख से जिसका हाल ही में अनुवाद हुआ है, जिससे पता चलता है कि दिगम्बर भारतीय दार्शनिक निर्ग्रथों