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जैनत्व जागरण......
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महल अद्वितीय था जहाँ सिकन्दर ने भी निवास किया था । उस समय यह राज्य एध्य के नाम से जाना जाता था बेबीलोन के नाम से नही । क्योंकि भारत के बाहर उस समय नेबूचन्द्र नेजर से शक्तिशाली अन्य किसी का राज्य नही था अत: मगधाधिपति श्रेणिकके पुत्र अभय कुमार ने भेट स्वरूप ऐर्ध राजकुमार को जिन प्रतिमा भेजी थी जिससे प्रतिबोध पाकर आर्द्र राजकुमार भारत आया। पुत्र की खोज में नेबुचन्द्रनेजर स्वयं भारत सौराष्ट्र के रास्ते से आया और उसने गिरनार की यात्रा की । इस सन्दर्भ में आर्द्र देश और आर्द्र राजकुमार के विषय में जैन साहित्यिक स्रोतों द्वारा जो प्रमाण उपलब्ध है उन पर खोज की जानी चाहिए | Records shows that Mahavira had travelled extensively in India as far as south to Krishna river valley and had influenced with the religious Gospel not only various Kingdoms within India but also persian King Karusa and Prince Adreka Dr. Bhuvendra Kumar.
सायरस के शिलालेखों से यह प्रमाण मिलता है कि बेबीलोन में मर्दुक की पूजा तथा बलि की प्रथा नेबूचन्द्र नेजर ने बन्द करायी थी । प्रारम्भ में यह मर्टुक का भक्त था परन्तु बाद में जैन धर्म स्वीकार कर लिया । इसने नौ फुट ऊँची व नौ फुट चौड़ी स्वर्ण प्रतिमा बनवायी तथा उसके समीप सिंह तथा सर्प बिम्ब बनवाया था । आज इस मन्दिर के टूटे फूटे टुकडे बर्लिन और Constantipole के म्यूजियमों में सुरक्षित हैं । इसका जो भाग अभी भी वहाँ मौजूद है उस पर वृषभ, गैंडा, सुअर, साँप, सिंह, बाज इत्यादि खुदे हुए दिखायी देते हैं । जो जैन तीर्थंकरों के प्रतीक चिन्ह या लांछन हैं। वृषभ का ऋषभदेव, गैडा श्रेयांस नाथ का, सुअर विमलनाथ का, बाज अनन्त नाथ का, साँप पार्श्वनाथ का, और सिंह भगवान महावीर का प्रतीक है। तीर्थंकरो के लांछन या प्रतीक पहले दीवारों, स्तम्भों, आदि पर बनाये जाते थे । कालान्तर में जब इन मूर्तियों की अन्यमतानुसार पूजा होने लगी, तब ये प्रतीक मूर्तियों के नीचे चिह्नित किये जाने लगे । बेबीलोन का बाज मन्दिर चौदहवें तीर्थंकर अनन्त नाथ का होना चाहिये क्योंकि बाज चौदहवें तीर्थंकर अनन्त नाथ का चिन्ह है एवं बाज मन्दिर की मूर्तियाँ अन्य
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