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जैनत्व जागरण.....
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believed has extended into China and Scandinavia where he as worshipped under the names of Fo and Odin respectively. भूमध्य देशों में भारतीयों को सबसे पुराना प्राप्त अवशेष श्रमणी की मूर्ति है जिसके बायें कन्धे पर चादर लटक रही है ! ईसा १२०० की एक काँसे की ऋषभ की मूर्ति अलासिया साइप्रस में मिली है ऋषभदेव की मूर्तियाँ मलाशिया में, इसबुकपुर में और हिट्टी देवताओं में प्रमुख देवताओं के रूप में मिली हैं । ऋषभदेव व कुछ अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियां दूसरे देशों में भी मिलती है । फ्रांस के पेरिस म्यूज़ियम में एक सुन्दर कलाकृति की श्री ऋषभदेव की प्रतिमा रखी हुई है ये प्रतिमा मथुरा के कंकाली टीले की प्राचीन मूर्तियों के समान है ।
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मध्य एशिया के यास्कर नगर से २० मील दक्षिण में कुगियर नामक स्थान में कागज में लिखे हुए सबसे पुराने भारतीय लिपि के चार ग्रन्थ मिले हैं । जिसका समय डा. हार्नल ने ई. पू. चौथी शताब्दी निश्चित किया है । डा. स्टेन को खोतान प्रदेश में एक पुराना ग्रन्थ मिला है जिसका नाम संयुक्तागम है । जैसा कि आगम नाम से विदित होता कि यह निश्चित ही जैन ग्रन्थ है | रूस के अजरबेजान (जो आज एक पृथक् देश बन चुका है) की राजधानी बाकू में एक मंदिर (खाम ओग्न्या) आज भी संरक्षित स्मारक के रूप में है । इस मंदिर के अन्दर विभिन्न सोलह गुफानुसा कक्षों में मूर्तियों है । इन मूर्तियों को देखने से ही इनकी सजीवता का अनुमान होता है । इनमें से कुछ मूर्तियों तपस्वियों की उपवास की मुद्रा में है । यह निश्चित रूप से भगवान आदिनाथ शिव अर्थात् ऋषभदेव का मंदिर है । ( अजरबेजान का शिव मंदिर डा. काशीराम उपाध्याय)
मंगोलिया में सैंकडो बिहार है जिनमें गाण्डडू : प्रमुख बिहारों में है । इस बिहार का द्वार शंख, चक्र और मीन के चित्रों से सजा है । तथा दो सिंह बने हैं । मुख्य द्वार पर धर्म चक्र और मृग हैं । इससे स्पष्ट है कि यह बिहार पहले जैन केन्द्र था । शंख, चक्र, मीन, सिंह, मृग आदि जैन प्रतीक है, बौद्ध नहीं । जब भारत में ही इतिहासकारों ने ऐसी भूल की है तो विदेशों में यह एक सामान्य बात है । इसी मन्दिर का तीसरा