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जैनत्व जागरण....
जर्मन पुस्तक के आधार पर लिखा है कि पुर्किस्तान में जो प्राचीन चित्र मिलते हैं उनमें जैन धर्म सम्बन्धी अनेक घटनायं भी चित्रित हैं । (C. J. Shah Jainism in Northern India, 1932, Pg. 199)
टोकियो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नाकामुरा को चीनी भाषा में एक जैन सूत्र मिला है जो इस बात का प्रमाण है कि शताब्दियों पहले चीन में जैन धर्म प्रचलित था । सर विलियम जोन्स के अनुसार चीनी लोग अपनी उत्पत्ति भारत से बतलाते हैं। प्रोफेसर लेकेनपेरि चीन शब्द की उत्पत्ति भारत से हुई बतलाते हैं । Ancient Chinese Tradition नामक ग्रन्थ में यह वर्णन है कि ई.पू. ३००० में भारतीय व्यापारियों का एक दल चीन में गया था उसने वहाँ अपने उपनिवेश बसाये थे । लामचीदास जैन जो गोलालारे जाति के थे उन्होंने भूटान होते हुए चीन आदि देशों के जैन तीर्थों की यात्रा की थी। उन्होंने यह यात्रा १८ वर्ष में पूरी की थी। अपने विवरणों में वहाँ के जैन मन्दिरों का विस्तृत वर्णन किया है।
• उनके अनुसार पेकिंग शहर में तुनावारे जाति के जैनियों के ३०० मन्दिर थे । इन मन्दिरों में कायोत्सर्ग मुद्रा एवं पद्मासन मुद्रा में मूर्तियों थी । वहाँ के जैनियों के पास जो आगम ग्रन्थ हैं वह चीन की लिपि में
• तातार देश में पातके और घघेरवाल जाति के जैनी है। यहाँ की प्रतिमाएँ समवसरण में देशना की सूचक हैं।
• तिब्बत देश में वाधानारे तथा भावरे और सोहना जाति के जैन निवास करते हैं । यहाँ च्यवन कल्याणक की पूजा करते हैं तिब्बत में १०वीं शताब्दी के पश्चात् ही बौद्धधर्म गया था । प्राप्त प्राचीन चित्र तथा पेटिंग्स दिसम्बर मुनियों की हैं परन्तु जिन्हें भ्रम-वश बौद्धों की मान लिया गया है। जब कि बौद्धों में नग्न प्रतिमाएँ नहीं होती। “The four monastries... their special marks... these paintings represent Buddhist saints often nude and in a standing position.” (Hustory of Western Tibet - A. H. Frenche.) कर्नल जेम्स टाड के अनुसार Nemunatha the 22nd of the Jinas and whose infunc, Tod