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जैनत्व जागरण.......
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द्वारा व्यापार के साथ साथ श्रमण संस्कृति का प्रभाव व प्रचार तो होता ही था ये अपने देश का नाम भी वहाँ के देशों और स्थानों को देते थे
They gave the name of there mountains to the whole country B.C. Law. इस सन्दर्भ में यह स्पष्ट है कि जैन व्यापारी बर्मा स्याम मलाया चम्पा आदि देशों में व्यापार के लिये जाते थे । उन्होंने वहाँ अपने उपनिवेश भी बसाये थे । वहाँ के जगहों की भारतीय स्थानों के नामों की समानता से यह सिद्ध होता कि उनकी संस्कृति का प्राचीन भारतीय श्रमण संस्कृति से अभिन्न सम्बन्ध रहा है । जिस प्रकार भारतीय व्यापारी करने आते थे। जैन साहित्य में 'नायधम्मकहाओ' कथानक में चम्पा का वर्णन है जहाँ से व्यापारी माल लादकर समुद्र में अन्य जगहों में व्यापार के लिए जाते थे । ये निश्चित ही भागलपुर स्थित चम्पा नहीं है वरन् वियतनाम की चम्पा है जो mekong river के किनारे और समुद्र से नजदीक है । अगकोरवाट का मंदिर जैन मन्दिर था । यह मंदिर थाई तथा बर्मी लोगों द्वारा १२वीं शताब्दी में ध्वंस कर दिया गया । वास्तव में यहाँ जो मूर्तियाँ पद्मासन में तथा साँपफण से सुशोभित हैं वो बुद्ध की नहीं हो सकती वरन् भगवान पार्श्वनाथ की हैं । “ According to Harisatya Mahacharya and other Archaelogists the famous statues of so called Naag Buddha are actually of Tirthankar Parsvanatha belonged to Naag Dynasty. (Meru temples of Angkor-Jineshwar Das Jain)."
"The existence of Angkorval, Angkorthan along with many statues in Ardhapadmasana posture are a sufficient proof that these areas were dominated by shraman culture and traditions. since there areas were the birth place of many Tirthankar as, people from India used to visit these placeas pilgrimage centres (Jineshwar Das Jain). " यह हम पहले ही कह आये हैं कि प्राक्वैदिक युग में दक्षिण श्रमण संस्कृति का प्रभावशाली क्षेत्र था । श्रीलंका में बुद्ध धर्म के पूर्व जैन धर्म स्थापित था इसका प्रमाण प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों से प्राप्त होता है ।