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जैनत्व जागरण.......
सीले इस बात का तथ्य प्रमाण है कि ऋग्देव की रचना काल से भी पहले भारत में श्रमण धारा का, अस्तित्व ही नहीं वरन् वही एक मात्र प्रमुख धारा थी ।
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Dr. Thomas Mcevilley of Rice University of Los Angeles and Dr. Katherine Harpar of Loyala Marymount University further strengthen the suggestion. that "there existed Pre Aryan Jain Tradition in the Indus Valley." हैं
हुए
सिन्धु घाटी सभ्यता में कोई भी वैदिक धर्मके अवशेष प्राप्त नहीं । अत: आर्हत् परम्परा ही आदि परम्परा है । “The religion of . the Jinas can be traced before the advent of the vedic Aryans to the Pre historic period in India. The first of these Jinas was R. shabha whose bull insignia is found in Indus valley civilization.” भगवान ऋषभदेव ने जहाँ कर्म युग की नींव डाली वही धर्म युग की भी आधार शिला रखी थी । वे विश्व के आद्य प्रचारक सिद्ध हुए । वेदों में ऋषभ शब्द भिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है । रुद्र, शिव, मेघ, बैल, साँड तथा अग्नि के रूप में उल्लेख है ये नाम ऋषभदेव के पर्यायवाची हैं। ऋग्वेद में दो जगह ऋषभदेव को आराध्य के रुप में स्वीकार किया गया है । जैनागमों में ऋषभदेव को इस अवसर्पिणी काल के धर्म का आदि प्रवर्तक कहा है भागवत् में ऋषभदेव को अवतार मानकर उनका उद्देश्य वातरशना श्रमण ऋषियों के धर्म को प्रकट करनेवाला बताया है । श्री रामधारी सिंह जी 'दिनकर' ने अपनी पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' में लिखा है - " यह मानना युक्ति युक्त है कि श्रमण संस्था भारत में आर्यो
आगमन के पूर्व विद्यमान थी ।" पातंजलि जो ब्रह्म आर्य थे उन्होंने भी लिखा है कि पौराणिक धर्म आगम और निगम पर आधारित माना जाता है । निगम वैदिक प्रधान है और आगम प्राग्वैदिक काल से चली आ रही वैदिकेतर परम्परा का वांचक है ।
जैन इतिहास के अनुसार मूलवेदों के ३६ उपनिषद् थे । मूल प्राचीन वेद आधुनिक वेंदों से भिन्न हैं। उनकी रचना आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र राजर्षि भरत चक्रवर्ती द्वारा अपने पिता के उपदेश से श्रावकों के लिये