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जैनत्व जागरण.....
drinking wine as important ethical aspect of their religion. (Encyclopedia Britanica vol. 25 Edn proved.)'
इतिहासकार हेरेन का मानना था कि मिस्त्र के लोग भारतीय मूल के हैं । यही एक महत्त्वपूर्ण कारण था भारत और मिस्त्र की प्राचीन धर्म और संस्कृति में समानता का । The skull of the Egyptians and those of Indian races of antiquity as preserved in the tombs of the respective countries bear a close resemblance to one another. रायबहादुर राम प्रसाद चन्दा (जैन-विद्या) ने मिस्त्र से प्राप्त मूर्तियों और सिन्धु घाटी से प्राप्त मूर्तियों की तुलना करते हुए लिखा है - "लैट एफ.डी.पी. १५१ में खुदी हुई आकृति की अवस्था इण्डियंस (इण्डस) की मोहरों पर खडे हुए देवताओं जैसी है । तत्कालीन इजिप्शियन शिल्पों में प्रकट. प्राचीन राजवंशों में (III, VI.) दोनों तरफ लटकते हाथों वाली मूर्तियाँ थीं। ये मिस्त्र (egypt) और ग्रीक मूर्तियाँ उसी प्रकार के हावभाव बतलाती हैं । फिरभी इण्डस मुहरों पर खडी आकृतियों में विशेषता के रूप में जो त्याग भावना दिखायी देती है उसका इनमें सम्पूर्ण अभाव है।" ।
मिस्त्र से प्राप्त काँसे की कपि की मूर्ति का सादृश्य चौथे तीर्थंकर अभिनन्दन स्वामी के लांछन से है । इतिहासकारों ने इसकी तुलना सारनाथ के प्रतीकों के कर इसे बौद्ध धर्म से जोड़ा है । लेकिन सारनाथ का स्तूप जैन धर्म का द्योतक है। क्योंकि इसमे बने त्रिरत्न और सिंह की मूर्ति इस बात को प्रमाणित करते हैं । जैन जातक कथाओं में श्रेष्ठियों और व्यापारियों द्वारा समुद्री रास्तों से मिस्त्र में जाने का वर्णन मिलता है। भारत और मिस्त्र का सम्बन्ध प्राग् ऐतिहासिक काल से विद्वान् लोग मानते हैं । अतः यह कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि मिस्त्र की संस्कृति श्रमण संस्कृति का प्रतीक थी तथा श्रमण संस्कृति के तीर्थंकरो की उपासना का केन्द्र नथी। Anat and Reschpu were extensively worshippen in the eastern delta and in the whole of Eqypt.
Thomus Maries ने अपनी किताब 'The History of Hindusthan, its arts an its Sciences' में Egypt के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी है। उनके अनुसार पुरी के जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों और Egypt