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महान् ज्ञानी, महान् योगी, स्वनामधन्य आचार्य हरिभद्र सूरि के योग पर दो संस्कृतग्रन्थ----योगहष्टि समुच्चय तथा योगबिन्दु एवं दो प्राकृतग्रन्थ -योगशतक व योगविशिका का राष्ट्रभाषा हिन्दी में सम्पादन, अनुवाद और विवेचन किया है, जो इस ग्रन्थ द्वारा प्रस्तुत है ।
डॉ० शास्त्री को उनके बाल्यकाल से ही मैं देखता रहा हूँ, उन्हें प्रज्ञा, विद्या तथा. साधना संस्कार से प्राप्त है। भारतीय विद्या के क्षेत्र में जो उन्होंने उपलब्धियाँ की हैं, वे वास्तव में स्तवनीय तथा वृर्द्धापनीय हैं । उनके अध्ययन, ज्ञान एवं चिन्तन से समाज उपकृत तथा लाभान्वित हो, यह मेरी हार्दिक भावना है। उन्होंने योग को अपने प्रमुख अध्येय और विवेच्य विषय के रूप में स्वीकार किया है, यह मेरे लिए और हर्ष की बात है। अपनी सशक्त लेखिनी द्वारा योग वाङमय के उन विस्मृत या विस्मर्यमाण सत्यों को वे शब्दबद्ध करेंगे, प्रकाश में लायेंगे, जिनसे मानव-जाति का बहुत बड़ा उपकार संभाव्य है, ऐसा मुझे विश्वास है ।
___ मैं साधकोत्तम, परम पूज्य युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म० तथा योगशक्ति रूपा महासती श्री उमरावकुंवर जी म० 'अर्चना' से यह विनम्र अनुरोध करूँगा वे योग वाङमय के कार्य को कृपया विशेष बल प्रदान करते रहें और डॉ० शास्त्री जैसे प्रौढ़ अध्येताओं व मनीषियों को सत्प्रेरित करते रहें ताकि योगतत्त्व के प्रकाश द्वारा अज्ञानावृत लोकमानस में ज्ञान की दिव्य ज्योति उद्भासित हो सके।
पाठक प्रस्तुत ग्रन्थ से अधिकाधिक लाभान्वित हों, यह मेरी अन्तःकामना है ।
हरिद्वार (उत्तर प्रदेश)
--डॉ० गौरीशंकर आचार्य
(एम. ए. पी-एच. डी. विद्या भास्कर, शास्त्राचार्य, वेदान्तवारिधि, सांख्ययोगतीर्थ)
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