Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 17
________________ स्वामी का अद्भुत स्वागत-महोत्सव किया। कोणिक के हल्ल और विहल्ल नाम के दूसरे दो भाई थे, जिनको महाराजा श्रेणिक ने सेचनक हाथी और दिव्य कुण्डल दिये थे। उनके पास हाथी और कुण्डल मांगने पर भी जब न पा सका तब महारानी पद्मावती के आग्रह से कोणिक ने बलपूर्वक लेना चाहा। हल्ल और विहल्ल डर के मारे हाथी और कण्डल के साथ भागकर अपने नाना चेडा महाराजा के पास विशाला नगरी में जा पहुँचे । कोणिक की मांग पर भी चेडा महाराजा ने इनको वापिस लौटाने से इन्कार कर दिया । तब कोणिक और चेडा महाराजा के बीच घमासान युद्ध हुआ, जिसमें एक करोड और साठ लाख सैनिक खेत रहे और विशाला नगरी का विनाश हुआ । कोणिक बडा तेजस्वी राजा हुआ । मगध साम्राज्य को खूब बढाया । अन्त में राज्य के लोभ से तमिस्त्रा गुफा के द्वार पर ही वीरनिर्वाण से ३१ वें वर्ष में मृत्यु पाया। महामन्त्री अभयकुमार महामन्त्री अभयकुमार श्रेणिक महाराजा के पुत्र थे । महामन्त्री के पद पर रहते हुए इन्होंने मालवपति चण्डप्रद्योतन को पराजित किया था । एवं मगध साम्राज्य को एकच्छत्र बनाया था । अनार्य देश के राजकुमार आर्द्रकुमार को आदीश्वर प्रभु की प्रतिमा भेंट भेज कर जैन बनाया था। बाद में आर्द्रकुमार ने ५०० सुभटों के साथ भारत आकर प्रभु महावीर के पास दीक्षा लेकर मोक्ष पाया । अभयकुमार भी दीक्षा लेकर स्वर्गवासी हुए। प्रथम निहव जमालि भगवान् महावीर स्वामी के भानजे और जामाता जमालिकुमार ने ५०० राजपुत्रों के साथ भगवान् के पास दीक्षा ली थी। बाद में जमालि की पत्नी और भगवान् की पुत्री प्रियदर्शना ने भी १००० राजपुत्रियों के साथ दीक्षा ली थी। शासन-स्थापना के चौदहवें वर्ष में क्रियाकाल और निष्ठाकाल, जो व्यवहार नय से भिन्न है, उसका एकान्त स्वीकार कर प्रथम निसव 'बहुरत' हुआ । स्थविरों के समझाने पर भी न समझा और अकेला ही संघ से अलग रहा । दूसरा निहव तिष्यगुप्त शासन की स्थापना के १६ वर्ष बाद भगवान् का शिष्य तिष्यगुप्त 'जीवप्रदेशवादी' दूसरा निसव हुआ, जिसे बाद में एक श्रावक ने समझा कर सम्मार्ग पर लाया।

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