Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 158
________________ सागर-संविग्न शाखा की गुरु परम्परा (५८) आचार्य श्री हीरविजयसूरि । (५९) उपाध्याय श्री सहजसागर । (६०) " " जयसागर । (६१) " " जितसागर । (६२) पं० "मानसागर । (६३) " मयगलसागर । (६४) " पद्मसागर । (स्व. सं. १८२५ मे) (६५) "सुज्ञानसागर । (स्व. सं. १८३८) (६६) "स्वरूपसागर । (स्व. सं. १८६६) " निधानसागर । (स्व. सं. १८८७) (६८) " मयगलसागर । (६७) (६९) गौतमसागर । (६९) नेमिसागरजी। (७०) झवेरसागर । (७०) रविसागरजी। (७१) आचार्य आनन्दसागरसूरि । (७१) सुखसागरजी। (७२) " माणिक्यसागरसूरि। (७२) आचार्य बुद्धिसागरसूरि । (सं. १९८१ स्वर्ग.) (७३) आ० अजितसागरसूरि । (७४) आ० ऋद्धिसागरसूरि । (७५) आ० कीर्तिसागरसूरि । आचार्य श्री आनन्दसागरसूरि (७१) बडे विद्वान् और तार्किक थे । आपके उपदेश से आगम-मन्दिरों का निर्माण एवं मुद्रित आगमों का प्रकाशन हुआ। इनके परिवार में आ० श्री माणिक्यसागरसूरि आ० श्री देवेन्द्रसागरसूरि, उपा० श्री धर्मसागर आदि के शिष्य-प्रशिष्य आ० श्री दर्शनसागरसूरि आ० श्री चिदानन्दसागरसूरि आदि हैं। (१४८)

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