Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 159
________________ आ० श्री कीर्तिसागरसूरि (७५) के परिवार में आ० श्री सुबोधसागरसूरि आ० श्री कैलाशसागरसूरि, आ० श्री पद्मसागरसूरि आदि हैं । विमल - संविग्न शाखा की गुरु-परम्परा (५६) आनन्दविमलसूरि (५७) ऋद्धिविमलजी (५८) कीर्तिविमलजी (५९) वीरविमलजी (६०) महोदयविमलजी (६१) प्रमोदविमलजी (६२) मणिविमलजी (६३) उद्योतविमलजी (६४) दानविमलजी (६५) पं० दयालविमलजी (६६) पं० सौभाग्यविमलजी (६७) पं० मुक्तिविमलजी (स्व. १९७४ में) (६८) आ० रंगविमलसूरि (सं. २००५ में आचार्य-पद) आचार्य श्री रंगविमलसूरि का स्वर्गवास हो गया है । इनके शिष्य - परिवार में थोडे मुनिराज हैं । 'जैन इतिहास' की यह पुस्तिका उपाध्याय श्री धर्मसागर गणि के 'श्री तपागच्छ पट्टावली सूत्र', पं० श्री कल्याणविजय गणि के 'श्री पट्टावली पराग संग्रह' त्रिपुटी महाराज के 'जैन परम्परा नो इतिहास', मुनि श्री दर्शनविजय ( त्रिपुटी) के 'पट्टावली - समुच्चय' वगैरह इतिहास की पुस्तकों का आधार लेकर एवं विश्वसनीय महापुरुषों से सुनी हुई बातों के आधार पर लिखी है । विद्वज्जनों से क्षतियों के सम्मार्जन हेतु प्रार्थना है । इस प्रकार देव गुरु के प्रसाद से राजस्थानान्तर्गत श्री सिरोही जिले के श्री झाडोली गांव में श्री युगादीश के सान्निध्य में यह पुस्तिका पूर्ण हुई । वि.सं. २०४६ भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी दि. १४-९-१९८९ । (१४९)

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