Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 157
________________ सिद्धान्तमहोदधि आचार्य श्री विजय प्रेमसूरि ___ (संवेगी शाखा के ७६ वें पट्टधर) आ. श्री विजयदानसूरि के पट्टधर आ० श्री विजयप्रेमसूरि का जन्म वि.सं. १९४०, दीक्षा वि.सं. १९५७, आचार्य पद वि.सं. १९९१ और स्वर्गवास वि.सं. २०२४ में हुआ। आप निर्मल चारित्र के स्वामी थे । तप, त्याग, वैराग्य, वात्सल्य और यतना के आदर्श प्रतीक थे । बाल-दीक्षा प्रतिबन्धक विधान और विधेयक को आपने अपूर्व कौशल से रद करवाया था। वर्तमान जैन शासन को बडी संख्या में साधुओं की भेंट एवं मार्गणाद्वार, संक्रमणकरण, कर्मसिद्धि और बंध-विधान की वृत्ति इत्यादि अपूर्व ग्रन्थों का सर्जन आपके जीवन की महान् सिद्धि है। आपके शिष्य-प्रशिष्य परिवार में अहमदाबाद के भद्रकाली के मन्दिर में बलि बन्द कराने वाले व्याख्यानवाचस्पति आ० श्री रामचन्द्रसूरि, महान् तपस्वी आ० श्री राजतिलकसूरि, न्यायविशारद आ० श्री भुवनभानुसूरि, पं.प्र. श्री चन्द्रशेखर वि. म.सा. आदि हैं। भारत की स्वतन्त्रता और देश के दो दुकडे ई.सं. १९४७ में १५ अगस्त को भारत स्वतंत्र हुआ, किन्तु देश हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दो टुकड़ों में विभाजित हुआ । (१४७)

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