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दूसरे दिन भीम ने भगवान् ऋषभदेव की रत्न, सुवर्ण और पुष्पों से बडी भारी पूजा की और कपर्दी यक्ष की भी पूजा की। शाम को घर आया तब अपना भण्डार पूर्ववत् भरपूर पाया । इस प्रकार त्याग भावना से भीम सुखी हुआ ।
महुवा के जगडु
वि.सं. १२२६ में राजा कुमारपाल के संघ की तीर्थमाला की बोली लग रही थी । महामात्य बाहड ने चार लाख द्रम्म से बोली का प्रारम्भ किया । बोली बढने लगी । जगडु ने सीधे सवा करोड की बोली लगाकर अपनी माता को तीर्थमाला पहनाई । जगडुं के पास सवा करोड मूल्य के पांच माणिक्य थे । उसमें से एक शत्रुंजय तीर्थ में, दूसरा गिरनार तीर्थ में, तीसरा प्रभास तीर्थ में दिया । यह जगडु प्रसिद्ध दानवीर जगडुशाह (वि.सं. १३१५ ) से भिन्न है, जिनका वर्णन आगे किया जाएगा ।
हाँसी देवी और पासिल
सेठ छाडा की विधवा पुत्री हाँसीदेवी सिद्धराज के राजविहार में प्रभुदर्शन कर रही थी । उसी समय पासिल नाम का एक सामान्य दीखता जैन मन्दिर के कार्य का कुशलता से निरीक्षण कर रहा था एवं उसकी लंबाई-चौडाई का माप ले रहा था । यह देखकर हाँसी देवी ने मजाक में पूछा- भय्या ! क्या मन्दिर बंधवाना है जिससे माप ले रहे हो ? पासिल ने प्रत्युत्तर दिया- हाँ, बहिन तेरे मुँह में मिठाई ! तू उस मन्दिर में प्रतिष्ठा महोत्सव में अवश्य आना । हाँसीदेवी ने भी हाँ कहा ।
इस तरफ पासिल ने आरासण में जाकर देवी की आराधना कर धन प्राप्त किया और पैंतालीस हजार सोना मुहर व्यय कर भगवान् नेमिनाथ का भव्य मन्दिर बनवाया । हाँसी ने नौ लाख सोना मुहर के व्यय से उस मन्दिर में मेघनाद नाम का रंगमंडप बनवाया । वि.सं. १९९३ में आ. श्री देवसूरि ने प्रतिष्ठा की ।
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