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___पं. श्री देवचन्द्रजी (खरतरगच्छीय) खरतरगच्छीय के उपाध्याय श्री राजसागर के शिष्य पं० श्री दीपचंद के शिष्य पं. श्री देवचन्द्रजी हुए । ये विद्वान् और उच्चश्रेणी के साधक थे । महोपाध्याय श्री यशोविजय के 'ज्ञानसार' पर ज्ञानमञ्जरी नाम की टीका, चोबीसों भगवन्तों के स्तवन, नवपद पूजा और अन्य तात्त्विक साहित्य आपकी रचनाएँ हैं । सुना जाता है कि वर्तमान में आपकी आत्मा महाविदेह में केवलि-पर्याय में विचर रही है ।
पं. श्री कर्पूरविजय गणि, पं. क्षमाविजय गणि और पं. श्री जिनविजय गणि (संवेगीशाखा के ६३-६४ और ६५ वें पट्टधर)
क्रियोद्धारक पं. सत्यविजय गणि के पट्टधर पं. कर्पूरविजय गणि हुए जिनका स्वर्गवास १७७५ में हुआ । पं. करविजय गणि के शिष्य पं. क्षमाविजय गणि हुए । इन्होंने अपने बड़े भाई के साथ दीक्षा ली थी जिनका नाम श्री बुद्धिविजय था । पं. श्री क्षमाविजय गणि का स्वर्गवास वि.सं. १७८७ में हुआ । आपके शिष्य पं. श्री जिनविजय गणि और पं. श्री जसविजय गणि हुए ।
पं. श्री जिनविजय का स्वर्गवास वि.सं. १७९९ में हुआ । ये तीनों निर्मल चारित्री, विद्वान् और कवि थे ।
_ दिल्ली में नादिरशाह द्वारा कले आम
इसी समय ई.सं. १७३९ में दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के राज्यकाल में नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया और कत्ले-आम चलाया । बहुमूल्य कोहीनूर हीरा और मयूरासन भी वह अपने साथ ले गया ।
ग्रन्थ और उनके रचयिता इस समय तक अन्य आचार्य, उपाध्याय, गणि आदि भी हुए जिनका वर्णन ग्रन्थविस्तार के भय से नहीं कर सकते हैं । फिर भी प्राप्त ग्रन्थों के अनुसार उनके कर्ताओं का नाम और समय का निर्देश निम्न प्रकार है :
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