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उदयपुर
के राणा भीमसिंह ने ‘कविराज' और गायकवाड नरेश ने 'कवि - बहादुर' का इन्हें बिरुद दिया था । इनकी काव्यरचना रास, स्तवन, पत्र, स्तुति, सज्झाएँ वि.सं. १८५२ से १८९० तक की उपलब्ध हैं । 'सोहमकुलरत्न पट्टावलीरास’ आपकी ऐतिहासिक रचना है ।
शेठ मोतीशाह और श्री जिनभक्ति
शेठ मोतीशाह बम्बई के साहसी व्यापारी, धर्मनिष्ठ और उदार थे । इन्होंने श्री शत्रुंजय गिरि पर विशाल टुंक का निर्माण करवाया जिसमें सैकडों जिनबिंब प्रतिष्ठित हैं । बम्बई के भायखला और भूलेश्वर लालबाग में विशाल मन्दिर बनवाये । पालीताना में विशाल धर्मशाला बनवाई एवं श्रीसिद्धगिरि का बडा संघ निकाला ।
एक बार शेठ राजमार्ग से गुजर रहे थे । तब देखा कि एक कसाई गाय को बाँधकर ले जा रहा है किन्तु गाय आगे बढना नहीं चाहती। शेठ ने अपने नौकर (भैया) को छुडाने के लिए भेजा, किन्तु कसाई माना नहीं और भैया यूं ही वापिस लौटा। तब शेठ ने भैया को आदेश दिया कि गाय को कैसे भी छुडाओ । भैया ने जाकर गाय की रस्सी काट दी । गाय एक और भाग गई । कसाई कुछ बोलता उससे पहिले भैया ने उसे कसकर एक थप्पड लगा दी । कसाई धडाम से जमीन पर गिर गया और भवितव्यता से उसके प्राण निकल गये ।
पूजा का प्रभाव
अदालत में मुकदमा चला। शेठ को फांसी की सजा सुनाई गई । फांसी के पूर्व शेठ से उनकी अन्तिम इच्छा पूछी गई। शेठ ने भायखला के मन्दिर में प्रभुपूजा की इच्छा दिखाई । तब शेठ की इच्छा मान्य रखी गई और शेठ ने भी आज की यह पूजा अन्तिम पूजा जानकर बडे भाव से प्रभु को पूजा । नियत समय पर फांसी के तख्ते पर चढाये गये और फांसी का फन्दा गले में डाला गया किन्तु दूसरे ही क्षण फन्दा टूट गया । देखने वालों को आश्चर्य हुआ । यह समाचार इंग्लेंड महारानी विक्टोरिया को पहुँचाए गये और पुनः फांसी पर चढाने का आदेश हुआ । दूसरी बार भी फांसी का फन्दा टूट गया । देखने वालों के
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