Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 151
________________ आचार्य श्रीलक्ष्मीसूरि (आनन्दसूरि गच्छ के ६६ वें पट्टधर) आ० श्री विजयमानसूरि के शिष्य आ० श्री विजयऋद्धिसूरि (६४) के शिष्य आ० श्री विजयसौभाग्यसूरि (६५) के शिष्य आ० श्री विजयलक्ष्मीसूरि हुए । इनका जन्म सिरोही (राज.) जिले के सिरोडी और हणादरा के बीच पालडी गाँव में वि.सं. १७९७ में हुआ । दीक्षा और आचार्यपद वि.सं. १८१४ में हुआ । आप विद्वान् और कवि थे । 'उपदेशप्रासाद' अष्टासिका व्याख्यान, वीसस्थानकपूजा, ज्ञानपंचमी देवनंदन, स्तवन, सज्झाएँ आदि आपकी ग्रन्थ रचनाएँ है । सिरोही नरेश वैरिशल्य और गायकवाड नरेश दामाजी आपके उपदेश से प्रभावित थे । वि.सं. १८५८ में आपका स्वर्गवास हुआ। पं. श्री रूपविजय गणि (संवेगी शाखा के ६८ वें पट्टधर) पं. श्री पद्मविजय गणि के शिष्य पं. रूपविजय गणि हुए । ये कवि और विद्वान् हुए । वि.सं. १८८२ से १८८९ तक इन्होंने 'पृथ्वीचन्द्र चरित' तथा 'विंशस्थानक'. 'पैतालीस आगम', 'पंचज्ञान' और 'पंचकल्याणक' की पूजाएँ रची । आपके शिष्य श्री अमीविजय हुए । अमीविजय के शिष्य श्री कुंवरविजय ने अष्टप्रकारी पूजा रची। श्री अमीविजय (दूसरे) के शिष्य श्री सौभाग्यविजय के शिष्य श्री मोहनविजय के शिष्य श्री धर्मविजय के शिष्य आ० श्री सुरेन्द्रसूरि हुए जिनके शिष्य-प्रशिष्य आ० श्री रामसूरि (डहेलावाले) आदि हैं । पं. श्री रूपविजय गणि का स्वर्गवास वि.सं. १९१० में हुआ । कविवर श्री मोहनविजय लटकाला विद्वान् इसी समय हुए । तीर्थोद्धारक आ० श्री विजयनीति सूरि भी पं. श्री रूपविजय गणि की परम्परा में हुए जिनके शिष्य आ० श्री विजयहर्षसूरि के शिष्य आ० श्री विजयमहेन्द्रसूरि और आ० श्री विजयमंगलप्रभसूरि हुए । इन्हीं के शिष्य प्रशिष्य आ० श्री विजयअरिहंत-सिद्धसूरि आ० श्री विजयहेमप्रभसूरि आदि है । कविराज श्री दीपविजय आनन्दसूरिगच्छ के आ० श्री विजयसमुद्रसूरि के आज्ञावर्ती और पं. प्रेमविजय गणि के शिष्य पं. रत्नविजय गणि के शिष्य श्री दीपविजय लोकप्रिय कवि थे । (१४१)

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