Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 153
________________ आश्चर्य की सीमा न रही । ये समाचार पुनः आदेश के लिए इंग्लेंन्ड भेजे गये । महारानी विक्टोरिया का आदेश आया कि यह कोई महान् व्यक्ति है । ईश्वर का दूत है । अतः पूरे सन्मान के साथ BARONET की पदवी उन्हें दी जाय । इस तरह शेठ को 'बेरोनेट' की पदवी मिली जिसके प्रभाव से फांसी के स्थान के पास से सेठ की बग्घी के निकलने मात्र से फांसी के लिए उपस्थित व्यक्ति की फांसी माफ हो जाती थी। यह हुआ वर्तमान काल में श्री जिन-पूजा का प्रत्यक्ष प्रभाव । सेठ का स्वर्गवास वि.सं. १८९२ में हुआ । शत्रुजय पर निर्मित टुंक की प्रतिष्ठा उनकी पत्नी सेठानी दीवालीबाई और उनके पुत्र खीमचंद ने वि.सं. १८९३ में बम्बई से 'छ'री पालित बडे संघ के साथ जाकर करवाई । उसमें लाखों का द्रव्य व्यय किया । सन् १८५७ की क्रान्ति और कंपनी राज्य की समाप्ति ई.सन् १८५७ में डलहौजी के शासनकाल में दिल्ली के बादशाह बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में मेरठ की छावनी से क्रान्ति का प्रारंभ हुआ। जिसमें बहादुरशाह को बन्दी कर रंगून भेजा गया । झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई वीरगति पाई । इस प्रकार भारतीय लोगों को कुचलने से ई.स. १८५८ में कम्पनी-राज्य सफल हुआ और महारानी विक्टोरिया भारत की शासिका बनी । पं. श्री कीर्तिविजय गणि और पं. श्री कस्तूरविजय गणि (संवेगी शाखा के ६९ वें और ७0 वें पट्टधर) ___ पं. श्री रूपविजय गणि के शिष्य पं. श्री कीर्तिविजय हुए । आपके शिष्य श्री जीवविजय हुए, जिन्होंने 'सकल तीरथ वंदू कर जोड' स्तवन की रचना की । आपके शिष्य श्री उद्योतविजय के शिष्य श्री अमरविजय के शिष्य श्री गुमानविजय के शिष्य श्री प्रतापविजय के शिष्य आ० श्री माणिक्यसिंहसूरि हुए । उन्होंने वि.सं. १९७६ में 'श्री महावीर पंच कल्याणक पूजा' और वि.सं. १९९९ में 'स्नु-पजा' रची । पं. श्री कीर्तिविजय गणि के काल में ही कवि श्री चिदानन्द हुए जिनके वैराग्यविषयक पद प्रसिद्ध हैं । पं. श्री कीर्तिविजय गणि के शिष्य पं. श्री कस्तूरविजय गणि हुए। (१४३)

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