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हीरविजयसूरि के परिवार के उपा. श्री भानुचन्द्र और उपा. श्री सिद्धिचन्द्र को आगरा पधारने के लिए बादशाह ने आमंत्रण दिया था और जब वे आगरा पहुँचे, बादशाह ने बडा स्वागत किया था। इसी समय शाहजहाँ की शादी अहमदाबाद के सूबेदार की लडकी मुमताज से हुई और इसी समय इंग्लेण्ड के राजा जेम्स प्रथम का प्रतिनिधि टॉमसरॉय बादशाह जहाँगीर से अहमदाबाद में मिला और भारत में व्यापार के लिए आज्ञा पाई थी।
वि.सं. १६७३ में मांडवगढ में बादशाह जहाँगीर ने आ०श्री विजयदेवसूरि की जीवन-चर्या से प्रभावित होकर उन्हें 'जहाँगीरी महातपा' और महोपाध्याय श्री नेमसागर को 'वादिजिपक' की पदवी दी थी । महोपाध्याय श्री विवेकहर्ष वगैरह जैन साधुओं से भी वह प्रभावित था ।
जहाँगीर की न्यायनिष्ठता एक बार शिकार करती नूरजहाँ की गोली से कोई धोबी मर गया । धोबिन ने जहाँगीर के दरबार में शिकायत की। तब बादशाह जहाँगीर ने धोबिन के हाथों में बंदक थमाते कहा- नूरजहाँ ने तेरे पति को मार दिया । तू इसके पति को (मुझे) मार दे । यह था जहाँगीर का न्याय ।
बादशाह शाहजहाँ और ताजमहल बादशाह जहाँगीर का तीसरा पुत्र शाहजहाँ ई.स. १५९० में जन्मा । यह महोपाध्याय श्री भानुचन्द्र से कुछ पढा था, उपा. श्री सिद्धिचन्द्र को अपना मित्र मानता था और महोपाध्याय श्री विवेकहर्ष गणि के परिचय में आया था । अतः यह जैन साधुओं से प्रभावित था ।
शाहजहाँ ने ई.सं. १६२८ से १६५८ तीस वर्ष तक राज्य किया और राज्यकाल में अपनी मुमताजबेगम की यादगार में ताजमहल बनवाया, जिसमें हजारों आदमियों ने कई वर्षों तक काम किया । इसे बने कोई ३५० वर्ष हुए है किन्तु देखने वाले को लगता है जैसे आज ही बना हो । दुनिया भरके लोग इसे देखने आते हैं। वर्तमान जगत् का यह एक आश्चर्य है।
में अपनी मुमताजबेगम की यादगार
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