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युरोपियन 'ईस्ट इन्डिया कंपनी' के नाम से डटे रहे और उन्होंने अपना आधिपत्य जमाया । ई.सं. १७६६ में कंपनी सरकार ने दिल्ली के बादशाह, बंगाल के नवाब और जगत्शेठ को वार्षिक भत्ता देना आरम्भ किया ।
शेठ खुशालचन्द का पुत्र शेठ बखतचन्द था । वि.सं. १८३६ में कंपनी सरकार के अधिकारी सर गार्डन ने पेशवा के सूबेदार को भगा दिया और अहमदाबाद को लूटना चाहा । तब शेठ बखतचंद, काजी सेख मुहंम्मद और दीवान मिर्जा ने सर गार्डन को समझा कर लूट बंद करवाई थी । शेठ बखतचंद का स्वर्गवास वि.सं. १८७० में हुआ । शेठ दलपतभाई, कस्तूरभाई और वर्तमान में शेठ बिमलभाई तथा श्रेणिकभाई वगैरह शेठ बखतचंद की परम्परा में है जिन्होंने शासनसेवा के और लोकोपयोगी अनेक कार्य किये हैं ।
शेठ बखतचंद के सात पुत्रों में एक शेठ हेमाभाई हुए जिन्होंने शत्रुंजय तीर्थ को काफी समृद्ध बनाया । अपने नाम की और अपनी बहिन उजमबाई के नाम की टोंकें बनवाई | शेठ हेमाभाई वि.सं. १९१४ में स्वर्गवासी हुए । तपागच्छाधिपति पं० श्री मुक्तिविजयजी गणि अपरनाम मूलचंदजी महाराज के उपदेश से वि.सं. १९२९ में उजमबाई ने अपना विशाल मकान धर्मशाला के तौर पर दे दिया जो आज भी अहमदाबाद में उजमबाई की धर्मशाला के नाम से प्रसिद्ध है ।
शेठ हेमाभाई का पुत्र शेठ प्रेमाभाई था । शेठ प्रेमाभाई ने 'आनंदजी कल्याणजी' की पेढी की स्थापना की जो शत्रुंजय महातीर्थ वगैरह अनेक तीर्थो का सफल प्रबंध कर रही है । यह शेठ पं० श्री मुक्तिविजयजी गणि (मूलचंदजी महाराज) का अनन्य भक्त था । इसने अनेक मन्दिर और धर्मशालाएँ बनवाई । नगरशेठ प्रेमाभाई हॉल, गुजरात कॉलेज, सिविल अस्पताल वगैरह अनेक लोकोपयोगी कार्य भी किये । शेठ प्रेमाभाई वि.सं. १९४३ में स्वर्गवासी हुए ।
शेठ प्रेमाभाई के तीसरे पुत्र का नाम शेठ मणिलाल था । इसने वि.सं. १९५६ के भयंकर दुष्काल में गरीबों को अनाज और पशुओं को घास - चारे की मदद कर
बचाया था ।
शेठ लालभाई के पुत्र शेठ चमनभाई ने अहमदाबाद में कसाईखाने के विरुद्ध बडी हडताल का आयोजन कर उसे बन्द रखाया था । शेठ चमनभाई का स्वर्गवास वि.सं. १९६८ में हुआ ।
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