Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 137
________________ धमधि बादशाह औरंगजेब औरंगजेब का जन्म मुमताज बेगम से ई.स. १६१८ में राजस्थान में हुआ था। यह बडा धर्मान्ध था । ई.स. १६४४-४५ में जब यह गुजरात का सूबेदार था, अहमदाबाद में सरसपुर के जैन मन्दिर को तोडकर मस्जिद में बदलाव दिया था और उसमें फकीरों को बसा दिया था । किन्तु नगरशेठ शान्तिदास ने अपने प्रभाव से शाहजहाँ द्वारा राज्य के खर्च से उसी जगह पुनः मन्दिर बनवाकर भगवान् चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा करवाई थी। ई.स. १६५८ में अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर और भाइयों को मरवाकर यह राजगद्दी पर आया और ई.स. १७०७ तक इसने राज्य किया । इसने हिन्दुओं और जैनों के अनेक मन्दिरों को नष्ट किया । पं. श्री प्रतापकुशल गणि आ०श्री हेमविमलसूरि की परंपरा के पं. श्री प्रतापकुशल गणि विद्वान् और फारसी भाषा के अभ्यासी थी। उनसे अनेक राजा महाराजा प्रभावित थे । यह बात जब औरंगजेब ने सुनी तब उसने आपको बडे सन्मान से अपने पास बुलवाया और अपने मन की शंकाओं का समाधान पाया । बादशाह इनसे प्रभावित हो कर कोई पांच-सात गाँवों की जागीरी देने लगा किन्तु इन्होंने निर्लोभता से इन्कार कर दिया। दयालशाह का किला (मेवाड का भव्य जैन तीर्थ) इसी समय मेवाड के राणा राजसिंह का महामन्त्री दयालशाह राजसागर की पहाडी पर भगवान् श्री ऋषभदेव का नौ मञ्जिल का भव्य जैन मन्दिर बनवा रहा था औरंगजेब इसे किला समझ कर वि.सं. १७२८ के आसपास चढ आया । दयालशाह ने बडी बहादुरी से बादशाह का सामना किया । उल्लेखनीय हकीकत है कि दयालशाह की पत्नी पाटमदेवी, जो उदयपुर के नगरशेठ की पुत्री थी, युद्ध के मैदान में एक सैनिक के वेश में अपने पति की सहायता में रही । मन्त्री की वीरता से प्रभावित होकर एवं यह किला नहीं किन्तु मन्दिर है, जानकर बादशाह वापिस लौट गया । वि.सं. १७३२ में दयालशाह ने विजयगच्छ के आ० श्री विनय (१२७)

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