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साहसी भैरवशाह
हुमायू के सौराष्ट्र पर के आक्रमण की यह हृदयद्रावक हकीकत है जो मुगलों के अत्याचारों की झांकी कराती है । आक्रमण के समय में लाखों लोगों को बन्दी बनाकर गुलाम के रूप में बेचने के लिए भेज दिया जाता था, जिनको पशुओं से भी बदतर हालत में रखा जाता था और वे हजारों की संख्या में मर जाते थे । ऐसे ही नौ लाख बन्दियों का एक झुण्ड खोजा मकीम के नेतृत्त्व में विक्रय के लिए उत्तर की तरफ भेजा गया था ।
इसी समय आ० श्री हीरविजयसूरि के श्रावक अलवर निवासी भैरवशाह की किसी निमित्त हुमायू ने अपनी मुद्रा सौंप दी थी । भैरवशाह ने शीघ्र साहस कर इन बन्दियों की मुक्ति का शाही फरमान तैयार किया और उस पर शाही मुद्रा लगाकर खोजा मकीम के हाथ में रख दिया । इस प्रकार सभी बन्दियों को मुक्त करा दिया । इतना ही नहीं, उन बंदियों को वस्त्र में बांधकर सोनामोहरें दी और उनकी रक्षा के लिए ५०० घुडसवार देकर उन्हें अपने-अपने स्थान पर पहुँचा दिया ।
बादशाह अकबर और पुनर्जन्म
हुमायू शेरशाह सूरि से पराजित होकर भाग गया था, तब अमरकोट के हिन्दू राजा के वहाँ अतिथि रही उसकी बेगम हमीदा ने ई. सं. २३-११-१५४२ के दिन एक बालक को जन्म दिया, जिसका नाम बदरुद्दीन अकबर रखा गया ।
अकबर के पूर्व जन्म का वृत्तान्त है कि वह प्रयाग में मुकुन्द ब्रह्मचारी नामक सन्यासी था, जिसके १४ शिष्य थे । एक बार इस सन्यासी ने हुमायू को शाही ठाठ से जाते देखकर दृढ संकल्प - निदान किया कि मैं भी अगले जन्म में ऐसा बादशाह बनूँ । निदान के अनुसार उसने एक ताम्रपत्र पर श्लोक लिखवा कर उस ताम्रपत्र को अपने अग्निस्नान के लिए निश्चित स्थान के आसपास गडवा दिया । संस्कृत श्लोक का भाषानुवाद निम्न प्रकार है :
"तीर्थराज प्रयाग में वि.सं. १५९९ के माघ कृष्णा द्वादशी के प्रथम प्रहर में समस्त पापों का क्षय करने वाला में ब्रह्मचारी मुकुन्द अखण्ड साम्राज्य के लिए शरीर को अग्नि में होम रहा हूँ ।
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