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महोपाध्याय श्री धर्मसागर गणि महोपाध्याय श्री धर्मसागर गणि का जन्म वि.सं. १५९५ में नाडोल में हुआ था । आ० श्री विजयदानसूरि जी के पास वि.सं. १६११ में दीक्षा और वि.सं. १६५३ में स्वर्गवास हुआ।
आप बडे विद्वान् और प्रखर वादी थे । आपने मारवाड में खरतरगच्छ और गुजरात में कडूआ मत के अनुयायियों को शुद्धधर्मी बनाया । आपने मेडता में दो राजमान्य श्रावकों का क्षमापना द्वारा पच्चीस वर्ष पुराना प्राणघातक वैरभाव मिटाया । आपकी ग्रन्थरचना निम्न प्रकार है :- श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका, कल्पकिरणावली, कुमतिकुदालप्रवचनपरीक्षा, तपागच्छपट्टावली स्वोपज्ञटीकासहित नयचक्र, ईरियापथिकाषट्त्रिंशिकावृत्ति, औष्ट्रिकमतोत्सूत्रदीपिका, पर्युषणाशतक स्वोपज्ञवृत्ति, गुरुतत्त्वप्रदीपिका आदि ।
हेमू विक्रमादित्य का उदय मुगल साम्राज्य की स्थापना कर बाबर ई.सं. १५३० में मरा । उसका पुत्र हुमायू राजगद्दी पर आया जिसे अफगानशासक शेरशाह सूरि ने ई.सं. १५३६ में हराकर भारत से बाहर भगा दिया और शेरशाह स्वयं दिल्ली की गद्दी पर बैठ गया । ई.स. १५५५ में हुमायू ईरान के शाह की सहायता से शेरशाह के वंशजों को पराजित कर अपने साम्राज्य का पुनः स्वामी हुआ । ई.स. १५५६ में हुमायू की मृत्यु हुई तब अकबर पंजाब की तरफ था। अतः अकबर को दिल्ली का बादशाह घोषित कर तरादी बेगखाँ हाकिम बना ।
इसी समय हेमू का उदय हुआ । यह जौनपुर का जैन व्यापारी था जो अपने मिलनसार स्वभाव, व्यवस्थाशक्ति और साहस से पूरी शासक के मन्त्री और सेनापति पद पर पहुँच गया था । इसने तरादी बेगखाँ को हराकर भगा दिया और स्वयं ने दिल्ली और आगरा पर अपना अधिकार कर लिया । यह सिर्फ छह महीने राज्य कर सका । अकबर का इसी हेमू के साथ ई.सं. १५५६ में युद्ध हुआ । जिसमें हेमू पराजित हुआ और बहरामखाँ द्वारा मारा गया । इस प्रकार अकबर का दिल्ली की राजगद्दी पर अभिषेक हुआ।
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