Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 128
________________ इस प्रकार के ताम्रपत्र को भूमि में गाडकर मुकुन्द ने एक जीर्ण पीपल के वृक्ष को जलाकर उसमें स्वयं को होम दिया । इस प्रकार मरकर मुकुन्द का जीव हुमायू की बेगम हमीदा की कूख में गर्भ रूप से उत्पन्न हुआ और करीब नौ महीने के बाद वि.सं. १५९९ के कार्तिक कृष्णा छठी तिथि के दिन जन्मा । इसके गत जन्म के शिष्य भी मरकर नरहरि, अबुलफजल, राजा मानसिंह वगैरह हुए। बाद में अपने पूर्व जन्म का संकेत होने पर अकबर ने अपने विश्वस्त पुरुषों द्वारा ऊपर कहे गये ताम्रपत्र की तलाश करवाई और उसे उसी हालत में पाया । यह पुनर्जन्म का सबल प्रमाण है, हालाँकि वर्तमान में ऐसे अनेक व्यक्ति हैं जिन्हें अपने पूर्वजन्म का ज्ञान हुआ है। अकबर साहसी और उदार था । ई.स. १५५६ में चौदह वर्ष की उम्र में पानीपत के मैदान में हेमू को हरा कर यह दिल्ली का बादशाह बना । हुमायूं के राज्यकाल में राजपूत राज्य स्वतंत्र हो गये थे । ई.स. १५६७ में इसने चितौड दुर्ग पर अधिकार कर लिया, यद्यपि इसमें बडा कष्ट पडा । राणा उदयसिंह ने इसी समय उदयपुर बसाया । ई.स. १५७२-७३ में अकबर ने गुजरात पर भी विजय पाई। इस तरह महाराणा प्रताप के सिवाय प्रायः भारत के सभी राजा अकबर की आज्ञा में आ गये थे। __ महाराणा प्रताप ने ई.स. १५७६ में हल्दी घाटी के मैदान में अकबर से लोहा लिया और चितौड, अजमेर और मांडलगढ को छोडकर संपूर्ण मेवाड को पुनः प्राप्त कर लिया था। ___ अकबर अपने शासनकाल में चंपा नामक जैन श्राविका के छह मास के उपवास तप से आकृष्ट होकर आ० श्री हीरविजयसूरि, आ० श्री विजयसेनसूरि, कृपारसकोश के रचयिता महोपाध्याय शान्तिचन्द्र, कादंबरी-टीका के कर्ता महोपाध्याय भानुचन्द्र वगैरह महापुरुषों के परिचय में आया और उनसे काफी प्रभावित हुआ था। अपने पुत्र जहाँगीर को अपना उत्तराधिकारी बनाकर अकबर का वि.सं. १६६२ में आगरा में निधन हो गया। महाराणा प्रताप महाराणा प्रताप का जन्म वि.सं. १५९६ में हुआ था । यह बड़ा वीर और साहसी था । अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए अकबर से खूब लडा । एक समय ऐसा भी आया कि इसे जंगलों में दिन बिताने पडे और बडी कडी (११८)

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