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मुहम्मद तुगलक (ई.स. १३२६ से ई.स. १३५१) मुहम्मद तुगलक दिल्ली से राजधानी देवगढ ले गया और पुनः दिल्ली ले आया । इस तरह जाने आने में मौसम की प्रतिकूलता, रास्ते की दूरी इत्यादि कारणों से बड़ी संख्या में सैनिक मर गये और खर्च भी काफी उठाना पडा । इसी तरह विविध असफलताओं के कारण इसका कोष खाली हो गया । अतः उसने तांबे के सिक्के ढलवाये । घर घर में टंक्शाल चालू हो गये । व्यापारी ऐसे सिक्के लेते नहीं थे । अतः व्यवहार और व्यापार चौपट हो गया । इसी कारण यह इतिहास में 'मूर्ख' कहलाया । इसकी निर्बलता से ई.स. १३३६ में विजयनगर में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना हुई और ई.स. १३४३ में 'बहमनी' साम्राज्य बना । अब इसकी कुछ अच्छाइयों देखें ।
यह विद्वान्, कवि, लेखक, वक्ता और धर्मप्रिय था । इसके राज्यकाल में शिकार की मनाई थी । खरतरगच्छ के आ० श्री जिनप्रभसूरि, वडगच्छ के आ० श्री गुणभद्रसूरि, मदनसूरि और महेन्द्रसूरि को यह खूब मानता था । जिनप्रतिमाओं को इसने वापिस लौटाया ।
फीरोजशाह तुगलक (ई.स. ११५१ से ई.स. १३८८)
मुहम्मद तुगलक के बाद उसका चचेरा भाई फीरोजशाह तुगलक दिल्ली का बादशाह बना । यह विद्वान्, दयालु और प्रजाप्रिय था । यह भरुच के महान् ज्योतिषी आ० श्री मलयचन्द्रसूरि को खूब मानता था । इसकी राजसभा के ज्योतिषियों के आग्रह से आ० श्री महेन्द्रसूरि ने 'यन्त्रराज' नामक ज्योतिष का ग्रन्थ रचा था । शेठ महणसिंह की सत्यवादिता से प्रसन्न हो कर बादशाह ने स्वयं उसके घर जाकर कोटिध्वज लहराया था । इसी महणसिंह के घर पधारे हुए आ० श्री राजशेखरसूरि का बादशाह ने खूब सन्मान किया था । वडगच्छ के आ० गुणभद्रसूरि के शिष्य आ० श्री रत्नशेखरसूरि का उपदेश सुनकर बादशाह ने उनका भी खूब सत्कार किया था।
फिरोजशाह के बाद क्रमशः उसका पौत्र ग्यासुद्दीन तुगलक, दूसरा पुत्र अबूबकर, तीसरा पुत्र मुहम्मद तुगलक (दूसरा), इसका पुत्र हुमायु, सिकन्दर और मुहम्मद तुगलक (तीसरा) ने अल्पकाल ई.स. १३८८ से १३९८ तक राज्य किया ।
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