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शेठ आभू ने शत्रुजय महातीर्थ का छ'री पालित संघ निकाला था, जिसमें ७०० मन्दिर, ३६ आचार्य भगवंत, ४००० बैल गाडियाँ और बडी संख्या में हाथी, घोडे, ऊँट वगैरह थे । इस संघ में १२ करोड द्रव्य का व्यय हुआ था ।
शेठ आभू ने ३६० साधर्मिकों को अपने समान धनिक बना दिया था। तीन करोड टंक खर्च कर अनेक ग्रन्थ-भण्डारों की स्थापना की थी। सोने की स्याही से सभी आगम और काली स्याही से अन्य ग्रन्थ लिखवाये थे । अनेक मन्दिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार, उपाश्रयों का निर्माण आदि धर्मकार्यों में करोडों की धनराशि व्यय की थी।
संघवी आभू की साधर्मिक भक्ति भी बेजोड थी । एक बाद मांडवगढ का मन्त्री झांझन शेठ आभू की साधर्मिक-भक्ति की परीक्षा के लिए चतुर्दशी के दिन ३२००० यात्रिकों को लेकर थराद जा पहुँचा । शेठ आभू पौषध-व्रत में था। छोटे भाई जिनदास ने तीन घंटे में भोजन की संपूर्ण तैयारी करवाकर सभी साधर्मिकों को सोने-चांदी के थालों में जिमाया और वस्त्रादि से उनका सन्मान किया।
झांझन तो इतनी सुन्दर व्यवस्था को देखते ही आश्चर्य चकित हो गया और अन्त में उसने क्षमा मांगकर शेठ आभू की साधर्मिक भक्ति की खूब प्रशंसा की। यह प्रसंग वि.स. १३५० के आसपास का है।
आचार्य श्री सोमप्रभसूति (सैंतालीसवें पट्टधर) आ.श्री धर्मघोषसूरि के पट्टधर आ.श्री सोमप्रभसूरि हुए । इनका जन्म वि.सं. १३१०, दीक्षा वि.सं. १३२१, आचार्यपद वि.सं. १३३२ और स्वर्गवास वि.सं. १३७३ में हुआ ।
ये शान्त, आत्मगवेषी, विद्वान् और वादी थे । आपको एकादशांगी कंठस्थ थी। बाद में चितौड के ब्राह्मणों को पराजित किया था।
आपश्री ने कोंकण में अतिवृष्टि और राजस्थान में शुद्ध जल की दुर्लभता के कारण साधुओं के विहार का निषेध किया था।
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