Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 115
________________ संघ-भक्ति एक बार आ. श्री सोमतिलकसूरि दौलताबाद पधारे । तब अपने शिष्यपरिवार और संघ के साथ जगत्सिंह के गृह-मन्दिर के दर्शन करने पधारे । शेठ ने आचार्य भगवन का बडा सत्कार-सन्मान किया । बाद में आचार्य श्री को ७०० कीमती वस्त्र भेंट देने लगा, किन्तु 'क्रीत दोष' के भय से आचार्य श्री ने नहीं स्वीकारे । तब ये सभी वस्त्र शेठ ने साधर्मिकों को ७०० सोनामोहरों और तांबूल के साथ भेंट कर दिये। सत्यवादी महणसिंह सेठ जगत्सिंह का पुत्र महाणसिंह दिल्ली में जा बसा । किसी चुगलखोर ने बादशाह फिरोजशाह तुगलक को कहा- जहाँपनाह ! महाणसिंह पच्चास लाख का आसामी है, अत: उचित शिक्षा करें। बादशाह ने महणसिंह को अपने पास बुलाकर संपत्ति के विषय में पूछा । दूसरे दिन महणसिंह ने राजसभा में आकर कहा- जहाँपनाह ! मेरे पास ८४ लाख द्रव्य है । महणसिंह की सत्यवादिता से बादशाह इतना खुश हुआ कि १६ लाख राज्य भंडार से मंगवाकर महणसिंह को दिये और स्वयं महणसिंह के घर जाकर 'यह तेरी सच्चाई का इनाम है' कहते हुए कोटिध्वज लहराया । आचार्य श्री रत्नशेखरसूरि नागौरी तपागच्छ-शाखा के आ. श्री रत्नशेखरसूरि का जन्म वि.सं. १३७२, दीक्षा वि.सं. १३८५ और आचार्यपद वि.सं. १४०० में हुआ । आप बडे विद्वान् थे । आपके उपदेश से फिरोजशाह तुगलक प्रभावित था । आपको 'मिथ्यात्वान्धकार-नभोमणि' का बिरुद प्राप्त था । आपकी ग्रन्थरचना निम्न प्रकार है :वि.सं. १४१८ में 'सिरिसिरिवालकहा', दिनशुद्धिदीपिका', वि.सं. १४४७ में 'छन्दोरत्नावली', 'षड्दर्शनसमुच्चय', वि.सं. १४४७ में 'गुणस्थानकक्रमारोह स्वोपज्ञवृत्ति', 'संबोधसित्तरी वृत्ति इत्यादि । (१०५)

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