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पूरी करना । बस वस्तुपाल तेजपाल के दिल में इसी भावना का बीज पडा जो एक बडे कल्पवृक्ष के रूप में फूला-फला। आबू पर लुणिगवसही नाम का दर्शनीय, विशाल और कलामय जिनमन्दिर बना, जिसका श्रेय लुणिग की शुभ भावना को है।
मल्लदेव महाजन-मुख्य और राजा का मन्त्री था । यह धर्मी, उदार और न्यायी था ।
महामात्य वस्तुपाल और तेजपाल वस्तुपाल गुजरात का महामात्य था । यह आ० श्री विजयसेनसूरि को धर्मदाता गुरु मानता था । वि.सं. १२७६ में यह खंभात का दंडनायक बना । यह स्वयं विद्वान् और विद्यानुरागी था । इसने सं. १२६० में श्री धर्माभ्युदयमहाकाव्य, शत्रुजयमंडन, आदिनाथस्तोत्र, गिरनारमंडन श्रीनेमिनाथस्तोत्र और अंबिकादेवी स्तोत्र की रचना की । राजा वीरधवल के शब्दों में "वस्तुपाल, जिसमें जवानी है फिर भी मदनविकार नहीं, लक्ष्मी है किन्तु गर्व नहीं और सज्जन-दुर्जन की परीक्षक बुद्धि है परन्तु कपट नहीं ।"
तेजपाल गुजरात का महामात्य था और बडा शूरवीर था।
आरम्भ में यह दोनों भाई राजा वीरधवल के महामात्य बने । इनकी सूझबूझ से गुजरात में छाई अराजकता समाप्त हो गई । इतना ही नहीं, किन्तु गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के हिंदु राजाओं का पुनः संगठन हुआ । वि.सं. १२८३-८४ में दिल्ली के बादशाह अल्तमश शमशुद्दीन की बडी सेना ने गुजरात पर आक्रमण किया था जिसे दक्षिण से वस्तुपाल ने और उत्तर से धारावर्षादेव वगैरह राजाओं ने हुमला कर नष्ट कर दिया था । इस तरह इन दोनों भाइयों ने कुल ६३ युद्धों में विजय पाई थी।
राजा वीरधवल की मृत्यु के बाद उसका पुत्र वीसलदेव राजा बना । एक दिन किसी क्षुल्लक (बाल साधु) ने उपाश्रय के उपरि भाग से प्रमाद से कचरा नीचे फेंक दिया, जो राह चल रहे राजा के मामा सिंह जेठवा पर जा पडा । सिंह जेठवा ने आवेश में आकर क्षुल्लक को मारा और बुरा-भला कहा । मन्त्री वस्तुपाल ने जब यह वृत्तान्त सुना तब किसी राजपुत्र द्वारा सिंह जेठवा का हाथ कटवाकर अपने
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