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संघाचारभाष्यविवरण, अवंचूरी सहित कायस्थिति-प्रकरण, दुस्समकालसमणसंघथय, योनिस्तव और लोकान्तिकदेवलोकजिनस्तव, समवसरणप्रकरण, श्राद्धजितकल्प, सत्तुंजयमहातित्थकप्प, अष्टापद-गिरनार-सम्मेतशिखर तीर्थकल्प, ऋषिमण्डलस्तोत्र, युगप्रधानस्तोत्र, जीवविचारस्तव इत्यादि अनेक ग्रन्थ है ।
प्रजाप्रिय राजा वीरधवल धोलकानरेश वीरधवल गुजरात के राजा भोला भीमदेव का सर्वोपरि कार्यकर्ता अर्थात् महामंडलेश्वर था । यह बुद्धिमान् और प्रजाप्रिय था । मलधारी आ० श्री देवप्रभसूरि एवं महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल से प्रभावित था । इसने मांस, मदिरा, शिकार आदि महाव्यसनों का त्याग किया था।
यह राजा अत्यन्त प्रजाप्रिय था । जब यह स्वर्गवासी हुआ तो इसके साथ चिता में १२० आदमी जल मरे थे । दूसरे भी बहुत से मरने वाले थे किन्तु महामात्यों ने उन्हें सिपाहियों द्वारा रोक दिया।
महामात्य वस्तुपाल और तेजपाल के पूर्वज चंडप पोरवाल गुजरात के राजा भीमदेव का भंडारी था। उसका पुत्र चंडप्रसाद राजा कर्णदेव का मन्त्री था । उसके दो पुत्र- (१) शूर और (२) सोम राजा सिद्धराज के मन्त्री थे । सोम का पुत्र आसराज, जो राजकार्य में नियुक्त था, एक बार मालासण गाँव गया । वहाँ उसने शेठ आभू की बालविधवा पुत्री कुमारदेवी को सुन्दर लक्षणों वाली जानकर उससे शादी कर ली । उससे क्रमशः चार पुत्र हुए- (१) लुणिग (२) मल्लदेव (३) वस्तुपाल और (४) तेजपाल ।
लुणिग- यह राजकार्य में कुशल था । यौवन वय में ही इसकी मृत्यु हो गई । उस समय आसराज का कुटुम्ब निर्धन था । मृत्यु के समय लुणिग के कुटुम्ब के सदस्यों ने तीन लाख महामन्त्र के जाप के अनुमोदन का पुण्य बंधवाया। इसी समय वस्तुपाल ने लुणिग से उसकी अन्तिम इच्छा पूछी । तब उसने गद्गद भाव से कहा- आबू तीर्थ में एक आद्य जिनेश्वर भगवान् की देव-कुलिका बनवाने की उत्कट भावना थी, किन्तु पूरी न हो सकी । अतः अनुकूलता हो तो, तुम
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