Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 106
________________ मुहम्मद गजनी ने ग्यारह बार भारत पर आक्रमण किया । ई.स. १००० में इसके सेनापति मसाऊद गाजी को श्रावस्ती के जैन महाराजा सुहीलध्वज ने कटीली नदी के किनारे हराया था। इसने ई.स. १०१५ में भिनमाल एवं साचौर को तथा ई.स. १०२४ में सोमनाथ के मन्दिर को लूटा और मन्दिर-मूर्तियों को तोडा । ई.स. १०३० में यह मधुमेह की बीमारी से मरा।। मुहम्मद गोरी ने तीन बार आक्रमण किया । ई.स. ११७८ में यह गजनी से मुलतान होकर गुजरात पर चढ आया, जहाँ से इसे हार खा कर वापिस अपने देश लौटना पडा । दूसरी बार ई.स. ११९० में इसने आक्रमण किया तब तराईन के मैदान में पृथ्वीराज चौहान ने इसे मार भगाया । तीसरी बार कन्नौज के राजा जयचंद की सहायता से इसने आक्रमण कर पृथ्वीराज चौहान को हराया और दिल्ली का राज्य अपने प्रतिनिधि गुलाम वंश के कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप कर यह पुनः गजनी चला गया । इस तरह भारत पर गुलाम वंश का शासन स्थापित हुआ। गुलामवंश कुतुबुद्दीन ऐबक प्रथम मुसलमान सुल्तान हुआ । इसने ई.स. ११९६ में मेरवाडा के मेरों पर हमला किया किन्तु मेरों को गुजरात की सहायता पहुँच गई और इसे भागकर अजमेर के किले में घुस जाना पडा । पुनः ई.स. ११९७ में आक्रमण कर आबू, चन्द्रावती और पालनपुर को जीतकर लूटा और मन्दिर- मूर्तियों को तोडता यह पाटण पहुंचा वहां इसने अपनी सत्ता जमाई किन्तु गजनी से मुहम्मद गोरी का आदेश आने पर यह वापिस दिल्ली आ गया । बाद में ई.स.१२१४ में इसने कन्नोज औरकाशी को भी जीतकर लूटा और वहां के मन्दिर-मूर्तियों को तोडा। इसके राज्यकाल ई.स. १२०२ में ही बख्यार खिलजी ने लखनऊ में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। इसके बाद इसका जामाता शमसुद्दीन अल्तमस शासक बना । इसने भीई.स. १२२६ में मांडवगढ, ग्वालियर और उज्जैन को जीता, लूटा और मन्दिर-मूर्तियों को तोडा । इसके बाद इसकी लडकी रजिया शासिका हुई। रजिया सुल्ताना प्रथम स्त्री शासिका थी जो पुरुष के वेश में रहती थी। इसे एक हबशी से प्रेम हो गया था। बाद में इसने सरदार अल्तुनिया से शादी की। तुर्को को स्त्री राज्य करे' यह पसन्द न था अतः इन्होंने रजिया और सरदार दोनों को मारकर रजिया के भाई मोहजुद्दीन को शासक बनाया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162