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• दानवीर जगडू शाह कच्छ भद्रावती के जगडू शाह आ० श्री परमदेवसूरि के उपदेश से दृढधर्मी बने । वि.सं. १३१३-१४-१५ में भयंकर दुष्काल पडा तब जगडूशाह ने ११२ दानशालाएँ स्थापित कर लोगों को भुख से अकाल में मरने से बचाया । धोलका के वीशलदेव, सिंघ के हम्मीर, मालव के मदनवर्मा, दिल्ली के बादशाह, काशी के राजा प्रताप, मेवाड के राणा इत्यादि राजा महाराजाओं को दुष्काल में अनाज दिया । इस प्रकार जगडूशाह ने 'दानवीर' की ख्याति पाई।
जगडूशाह की मृत्यु हुई तब उसके सन्मान में दिल्ली के बादशाह ने मुकुट उतारा, सिन्धपति ने दो दिन तक अन्न त्यागा तथा अर्जुनदेव ने खूब विलाप किया तथा पूरे दिन खाना नहीं खाया ।
जगडूशाह ने सौराष्ट्र के दक्षिण किनारे के समुद्र में कोयला पहाडी पर की देवी को साक्षात् कर हमेशा के लिए नरसंहार अटकाया । आज भी इस देवी के मन्दिर में प्रतिवर्ष मेले के दिन लोग देवी की आरती के बाद साहसवीर जगडूशाह और उसके पुत्र की आरती उतारते हैं ।
देदाशाह और कुंकुमरोला पौषधशाला देदाशाह नीमाड प्रदेश के नन्दुरी गाँव का निवासी था । "सवर्णसिद्धि" की प्राप्ति से धनाढ्य हुआ, किन्तु गाँव के ठाकुर आदि द्वारा परेशान होकर गुजरात के वीजापुर में आ बसा । ____ एक बार देदाशाह कार्यवश देवगिरि (दौलताबाद) गया । वहाँ गुरु महाराज को वंदन करने गया । गुरु महाराज के पास स्थानीय संघ नूतन पौषधशाला के निर्माण हेतु एकत्रित हुआ था और विचारणा चल रही थी। तब देदाशाह ने स्वयं पौषधशाला बनवाकर देने का संघ से आदेश मांगा । संघ ने कहा- भाग्यशाली! संघ में ऐसे अनेक घर हैं जो अकेले ही पौषधशाला बनवा सकते हैं किन्तु गुरु भगवन्तों की उपस्थिति में उनका घर 'शय्यातर का घर' बन जाएगा और उन्हें सुपात्र-दान से वंचित रहना पडेगा, अतः संघ ही सामुदायिक रीति से बनाने की सोच रहा है । फिर भी देदाशाह ने अधिक आग्रह किया तब संघ में से कोई बोल
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