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राजा विज्जलराय
विज्जलराय कलचूरी वंश का था और जैन था । चौलुक्य वंश के तीसरे तैलप (वि.सं. १२०१-१२२१) का यह सेनापति था । इसने तैलप से सत्ता छीन ली थी और वि.सं. १२२१ में स्वयं राजा बन बैठा था । इसकी राजधानी कल्याणी में थी। यह जैन होने पर भी अन्य धर्म-सहिष्णु था । लिंगायतों पर इसने इतनी कृपा बतायी कि लिंगायत विज्जलराय का अन्त करने में सफल हुए । पण्डित वसवब्राह्मण शिवभक्त था । उसने विज्जलराय को फँसाने के लिए अपनी बहिन रूपसुन्दरी इसे दी । विज्जलराय रूपसुन्दरी के मोह में डूबा हुआ था । वसव ने रूपसुन्दरी द्वारा सर्वसत्ता अपने हाथ में लेकर विज्जलराय को मार डाला । विज्जलराय के बाद उसका पुत्र राजगद्दी पर आया जिसने वि.सं. १२३९ तक राज्य किया। बाद में सोमेश्वर चतुर्थ कर्णाटक का राजा बना ।
जैसलमेर तीर्थ
लोद्रवा के रावल राजा दुसाजी के पुत्र जेसल ने वि.सं. १२१२ में लोद्रवा से १६ किलोमीटर दूर पहाडी पर किले का निर्माण कर जैसलमेर बसाया । यहाँ बडे बडे सात ज्ञानभण्डार, १० जैन मन्दिर और १८ उपाश्रय हैं । यह नगर ऐसे स्थान पर बसा है कि इसके चारों तरफ रेत के मैदान ही मैदान नजर आते हैं । साहित्य भंडारों को सुरक्षित रखने का यह योग्य स्थान है । इसे इतिहासलेखक मुनि त्रिपुटी ने साहित्यतीर्थ अथवा सारस्वततीर्थ कहा है ।
सिद्धपुर राजा सिद्धराज ने वि.सं. ११५२ में सिद्धपुर बसाया । इसी समय यहाँ भगवान् सुविधिनाथ का मन्दिर बना । वि.सं. ११८४ में राजा सिद्धराज ने 'रुद्रमाल' और जैन 'सिद्धविहार' अपरनाम 'राजविहार' बनवाया । इसी समय महामात्य आलिंगदेव ने यहाँ 'चौमुखविहार' बनवाया था । जिसके अनुसार धरणाशाह ने राणकपुर में वि.सं. १४९६ में धरणविहार-त्रैलोक्य-दीपकप्रासाद बनवाया।
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