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नाडोल के राजा केल्हणदेव नाडोल के राजा आल्हणदेव (वि.सं. १२०९-१२१८) का युवराज पुत्र केल्हणदेव जैनधर्म का अनुरागी था । उसने अपने पिता के राज्य में प्रत्येक अष्टमी एकादशी और चतुर्दशी के दिनों में अमारि का प्रवर्तन कराया था । यह पशु-बलि देने वाले को कडी शिक्षा देता था । बाद में (वि.सं. १२२१-१२४९) यह महामंडलेश्वर राजा बना ।
चन्द्रावती (आबू) की रानी शृङ्गारदेवी रानी शृङ्गारदेवी नाडोल के महामंडलेश्वर राजा केल्हणदेव की पुत्री और चन्द्रावती (आबू) के राजा धारावर्षादेव (वि.सं. १२२०-१२७६) की रानी थी। इसने वि.सं. १२५५ में झाडोली (जि. सिरोही) के भगवान् महावीर स्वामी की पूजा के लिए विशाल वाडी अर्पण कर जैनधर्म के प्रति अपना अनुराग प्रकट किया था ।
राजा प्रह्लादन परमार और पालनपुर
राजा प्रह्मादन चन्द्रावती के धारावर्षादेव परमार का छोटा भाई था । यह बडा पराक्रमी था । मेवाड के राजा सामन्तसिंह के साथ हुए युद्ध में गुजरात का राजा अजयपाल घायल हुआ तब प्रसादन ने उसके प्राणों की और राज्य की वीरता से रक्षा की थी। इसी प्रह्मादन ने भगवान् पार्श्वनाथ की सुवर्ण-प्रतिमा को गलाकर अपना पलंग बनवाया था। इसी पाप से इसे भयंकर कोढ रोग हो गया । आ० श्री शीलधवलसूरि के उपदेश से इसने भगवान् पार्श्वनाथ की नयी सुवर्णमयी प्रतिमा बनवाई, जिसकी पूजा से इसका रोग शान्त हो गया एवं हाथ-पाँव की सडी-गली अंगुलियाँ पुनः पल्लवित हुई । इसके बाद प्रह्मादन ने वि.सं. १२७४ में प्रसादनपुर पालनपुर बसाया और वहाँ 'राजविहार' बनवाकर उसमें वह सुवर्णमयी प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई जो भगवान् ‘पल्लविया पार्श्वनाथ' के नाम से प्रसिद्ध हुई ।
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