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मन्त्री कपर्दी अर्थात् दृढधर्मी
कपर्दी मूलतः निर्धन थे । कलिकालसर्वज्ञ आ. श्री हेमचन्द्रसूरि की आज्ञा से भक्तामरस्तोत्र का नित्य पाठ और ग्यारहवें श्लोक का जप करते थे। इससे धीरे धीरे आगे बढे । कहीं से इन्हें कामधेनु (मन चाहा देने वाली गाय) भी प्राप्त हुई। सिद्धराज के समय में ये खजानची रहे । बाद में कुमारपाल के राज्यकाल में इन्हें मन्त्रिपद भी मिला । इतना ही नहीं, ये महाराजा कुमारपाल के अतीव प्रीतिपात्र, साधर्मिक भक्ति के व्यवस्थापक और विचारसमिति के सदस्य थे । विद्वान् कवि भी थे। ___ राजा कुमारपाल के बाद अजयपाल राजगद्दी पर आया । उसने एक दिन के लिये कपर्दी को महामात्य बनाया और धर्मपरिवर्तन करना अस्वीकार करने के कारण तैल की तपी कढाई में डलवा कर मरवा डाला । कपर्दी प्राणसंकट के अवसर पर भी हँसते-हँसते बोले- हमने याचकों को करोड़ों का दान दिया, बाद में विरोधियों को हराया, राजाओं को शतरंज की बाजी की तरह जमाया और उडाया । इत्यादि करने योग्य सब कर लिया है । अब विधाता को यदि हमारी आवश्यकता है तो हम वहाँ भी जाने के लिए तैयार है।
शेठ आभड अर्थात् साक्षात् धैर्य
पाटण के करोडपति सेठ नाग की धर्मपत्नी मेलादेवी की कुक्षि में जब आभड था तभी अपने पिता की मृत्यु हो जाने से धन राजा ने ले लिया था । अमारि के दोहद से जन्म होने के कारण बालक का नाम अभय रखा । साथ खेलने वाले बच्चे 'आभड' कहकर पुकारते थे, अतः इसी नाम से यह बालक प्रसिद्ध हुआ । बालक का जन्म होने से लिया हुआ धन राजा ने वापिस लौटा दिया ।
___ चौदह वर्षकी उम्र में लांछलदेवी से शादी की और क्रमशः तीन पुत्र जन्मे । पाप के उदय से आभड वापिस निर्धन हो गया। आभड ने पत्नी को पुत्रों के साथ उसके पिता के घर भेज दिया और स्वयं किसी जौहरी के यहाँ हीरे घिसने लगा। मजदूरी के बदले में जो मिलते थे जिन्हें स्वयं पीस लेता और रोटी बनाकर पेट
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