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आपने आचार्य श्री के पास दीक्षा ले ली। आचार्य श्री ने भी आपको योग्य जानकर शास्त्र पढाये, आचार्य पद से अलङ्कृत किया और आपका नाम आ. श्री धनेश्वरसूरि रखा। आपका बडा प्रभाव था। धारानगरी का राजा मुंज आपको अपना गुरु मानता था । अन्य राजा भी आपके उपासक थे। चितौड में १८००० ब्राह्मणों को आपने जैन बनाये थे।
आचार्य मल्लवादी द्वितीय आ.श्री मल्लवादी ने बौद्धाचार्य धर्मकीर्ति के 'न्यायबिन्दु' ग्रन्थ पर लघु धर्मोत्तर की टीका कर टिप्पण ग्रन्थ बनाया है। आचार्य श्री जिनयशसूरि आपके बडे गुरुभाई थे, जिन्होंने मेवाड के राणा अल्लटराय की राजसभा में आचार्य श्री नन्नसूरि की आज्ञा से अपना बनाया 'प्रमाणशास्त्र' ग्रन्थ पढकर सुनाया था।
सांडेरगच्छीय आचार्य ईश्वरसूरि सांडेरगच्छीय आचार्य श्री ईश्वरसूरि बडे प्रभावक हुए। आपके ५०० शिष्य थे। मुंडारा की बदरीदेवी आपको प्रत्यक्ष थी। इसी देवी की सूचना से आपने पलासी (जि० सिरोही-राज०) जाकर सुधर्मा के माता पिता को समझा कर ६ वर्ष के सुधर्मा को दीक्षा दी थी, जो आगे जाकर आ० श्री यशोभद्रसूरि के नाम से महाप्रभावक हुए।
आचार्य श्री यशोभद्रसूरि (साडेरगच्छीय) आ. श्री यशोभद्रसूरि का जन्म सं. ९५७ में पलासी (बामणवाडा तीर्थ के पास) में हुआ। आपका जन्म नाम सुधर्मा था। आ.श्री ईश्वरसूरि के पास वि० सं० ९६३ में आपने दीक्षा ली । मुंडारा की बदरी देवी आपको भी सिद्ध थी। वि.सं. ९६८ में आप आचार्य पद से अलङ्कृत हुए। सूरिपद के समय जीवनपर्यंत छ विगइयों का त्याग और सिर्फ ८ कवल आहार लेने की आपने प्रतिज्ञा की । सूर्य देव ने आपको दूर-दूर के पदार्थो का ज्ञान कराने वाली अंजनकूपिका तथा सिद्धमन्त्रों की एक सुवर्णाक्षरीय पोथी दी थी। आप गगनगामिनी विद्या से प्रतिदिन पांच तीर्थो की यात्रा कर आहार लेते थे। आपको अनेक यन्त्र और मन्त्र सिद्ध थे, जिससे गुजरात के सामन्तसिंह चावडा, मूलराज सोलंकी, मेवाड का अल्लटराय आदि अनेक राजा आपसे प्रभावित थे । अल्लटराय ने आहड में भगवान् पार्श्वनाथ का मन्दिर बंधवाकर आपसे प्रतिष्ठा करवाई थी। आपने खेडब्रह्मा से भगवान् श्री आदीश्वर का मन्दिर आकाशमार्ग से रात में लाकर नाडलाई में स्थापित किया था, जो आज भी विद्यमान् है । आ.श्री. शालिभद्रसूरि आदि आपके अनेक प्रभावक शिष्य हुए।
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