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दण्डनायक जिनहाक् धोलका निवासी जिनहाक् निर्धन किन्तु बलवान् था । टीकाकार आ० श्री अभयदेवसूरि के उपदेशानुसार नित्य प्रभु पार्श्वनाथ की पूजा, गुरुवंदन और भक्तामर स्तोत्र का पाठ करता था । घी और कपास का मामूली धंधा था। इसी निमित्त धोलका से पाटण जाना आना होता था ।
एक बार रास्ते में तीन कुख्यात डाकुओं का मुकाबला हुआ जिसमें इसने अकेले ने तीनों को मार डाला । राजा भीमदेव (वि.सं. १०७८-११२०) ने यह वृत्तांत सुना तब राजसभा में इसका बडा सन्मान किया और इसे धोलका का दण्डनायक नियुक्त किया ।
उसने सर्वप्रथम सभी चोरों और डाकुओं को गिरफ्तार किया और अपने प्रदेश को निर्भय बना दिया । प्रदेश भर में उसके नाम की बडी धाक जम गई ।
सिर पर बोझा ढोने वाले मजदूरों का शुल्क माफ किया । एक गाँव से दूसरे गाँव जाने वाले रास्तों पर जगह-जगह मजदूरों को विश्रांति के लिए चबूतरे बनवाये । ___ धोलका में दो जिनमन्दिर बनवाये । अपने गृहमन्दिर में भगवान् पार्श्वनाथ की कसौटी की प्रतिमा तथा संघ के मन्दिर में भगवान् आदीश्वर, गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमाएँ तैयार करवाकर आ० श्री अभयदेवसूरि से अंजनशलाका और प्रतिष्ठा करवाई।
आचार्य श्री यशोभद्रसूरि एवं आ. श्री नेमिचन्द्रसूरि
(3९ वें पट्टधर) आ. श्री सर्वदेवसूरि द्वितीय के पट्ट पर आ. श्री यशोभद्रसूरि और आ.श्री नेमिचन्द्रसूरि हुए । इनमें आ.श्री यशोभद्रसूरि की विद्यमानता वि.सं. ११४८ तक अनुमानित है।
आ. श्री नेमिचन्द्रसूरि ने आचार्य पद प्राप्त करने से पूर्व और पश्चात् अनेक ग्रन्थ रचे हैं, जिनके नाम निम्नलिखित है -
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