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गुरु आज्ञा के परम पालक आ.श्री रामचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ आ. श्री हेमचन्द्रसूरि के पट्टधर आ.श्री रामचन्द्रसूरि हुए । ये शब्दशास्त्र, काव्यशास्त्र और न्यायशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् थे एवं कुमारपाल महाराजा की सभा के समर्थ कवि थे । आपको गुरुदेव ने बालचन्द्र नामक अपने कुशिष्य को आचार्य पद देने का इन्कार किया था ।
कुमारपाल महाराजा के स्वर्गवास के पश्चात् वि.सं. १२३० में अजयपाल सोलंकी गुजरात का राजा हुआ, तब बालचन्द्र से प्रेरित होकर उसने आ.श्री रामचन्द्रसूरि से कहा- आप बालचन्द्र को आचार्य पद प्रदान करें । आपने स्पष्ट शब्दों में उत्तर दिया- ऐसा करना गुरु-आज्ञा से विरुद्ध है ऐसा न हो सकेगा। तब राजाने कहा- यह मेरी आज्ञा है और आप इसका पालन करें, अन्यथा राजाज्ञा-भंग के दंड रूप आप तपाए गए तांबे के पाट पर बैठ जावें ।
आप श्री ने गुरु-आज्ञा-पालन के लिए 'जगत्प्रकाशक सूर्य भी शाम होने पर डूब जाता है, अतः जो नियत है वह हो कर ही रहता है' कहते कहते आपने बलिदान दे दिया । अन्त में बालचन्द्र को भी गुरुद्रोही और गच्छद्रोही ठहराकर अजयपाल ने मरवा डाला । आपकी ग्रन्थरचना निम्न प्रकार हैद्रव्यालङ्कार और नाट्यदर्पणविधि स्वोपज्ञवृत्तिसहित, सत्यहरिशचन्द्र-नलविलास कौमुदीमित्रानन्द-राघवविलास-यदुविलास-निर्भयभीमव्यायोग इत्यादि नाटक, रोहिणीमृगांक प्रकरण, वनमाली नाटिका, सुधाकलश-सुभाषित कोश, हैमबृहद्वृत्तिन्यास, ऋषभ-व्यतिरेक-प्रसादअपह्नति-अर्थान्तरन्यास-जिनस्तुति-दृष्टान्तगर्भा जिनस्तुतिशान्ति-भक्ति-नेमि-मुनिसुव्रत इत्यादि द्वात्रिंशिकाएँ, स्तोत्र और अनेक प्रशस्ति ग्रन्थ ।
परमात महाराजा कुमारपाल पिता त्रिभुवनपाल और काश्मीरा देवी से वि.सं. ११५० में कुमारपाल का जन्म हुआ ।
नि:संतान सिद्धराज ने वि.सं. ११७५ में भविष्यवेत्ताओं से जाना कि स्वयं को संतान न होगी और राज्य का उत्तराधिकारी कुमारपाल होगा । तब पूर्व जन्म के वैर से सिद्धराज ने कुमारपाल की हत्या करवानी चाही ।
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