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महोदय रह नहीं सके और कहने लगे- सभी मकान को देखकर प्रशंसा के फूल बिखेरते हैं, किन्तु आप कुछ कहते ही नहीं । आचार्य श्री के शिष्य मुनि माणिक्य ने कहा - यह तो गृहस्थ का घर है, अनेक तरह के आरंभ समारंभ का धाम है, तो आचार्य श्री इसकी प्रशंसा कैसे करें ? हाँ यदि पौषधशाला बनवाई होती तो उसकी उचित प्रशंसा आचार्य श्री अवश्य करते । इतना सुनते ही शान्तू बोल उठे- 'आज से यह मकान पौषधशाला में परिवर्तित है' कहकर मकान को पौषघशाला के रूप में समर्पित कर दिया और प्रवेशद्वार की दोनों दीवारों पर पुरुष प्रमाण दो बडे शीशे टंगवा दिये जिनमें आराधक लोग आराधना के पश्चात् अपना मुख देखकर पौषधशाला से बाहर निकलते थे । ___ मालव-विजय के बाद वि.सं. ११९५ के करीब मेवाड के आयड (आघाटपुर) में अनशन कर मन्त्रिराज स्वर्ग सिधार गये ।।
महामात्य मुंजाल मुंजाल राजा कर्णदेव (वि.सं. ११२०-११५०) के राज्यकाल में महामात्य थे । एक बार कर्णदेव कोई नीच स्त्री पर मोहित हो गया और एकांत में मिलने का उसे संकेत किया। मुंजाल ने उस स्त्री के स्थान पर अपमानित महारानी मीनलदेवी को भेज दिया । मीनलदेवी से सिद्धराज जयसिंह का जन्म हुआ । सिद्धराज के मालव-विजय में मुंजाल का बुद्धिकौशल मुख्य था । मुंजाल ने 'मुंजालवसही' उपाश्रय आदि धर्म के कार्य किये ।
महामात्य उदयन मेहता उदयन जालौर जिले के बागरा गाँव के निवासी थे । वह व्यवसाय हेतु गुजरात की कर्णावती नगरी में जा बसे । यहाँ शालापति त्रिभुवनसिंह की पत्नी लच्छी के साधर्मिक वात्सल्य से उदयन के भाग्य का सितारा चमक उठा । कुछ ही काल में यह नगरशेठ बन गये । सिद्धराज के मंत्री बने । (जूनागढ के राखेंगार को मारने के बाद ये 'राणक' की उपाधि से प्रसिद्ध हुए । और अंत में सिद्धराज ने इनको खंभात दंडनायक नियुक्त किया । वि.सं. ११५० में खंभात में कलिकालसर्वज्ञ आ. श्री हेमचन्द्रसूरि को इन्होंने दीक्षा दिलवाई। सिद्धराज के बाद कुमारपाल ने भी उदयन को खंभात के दंडनायक पद पर
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