________________
कलिकालसर्वज्ञ आ. श्री हेमचन्द्रसूरि धंधुका में माता पाहिनी की कुक्षि से 'चिन्तामणि-रत्न' के स्वप्नपूर्वक चंगदेव का जन्म वि.सं. ११४५ कार्तिकी पूर्णिमा के दिन हुआ । पूर्णतल्लगच्छ के आ.श्री देवचंद्रसूरि के पास बालक चंगदेव की दीक्षा वि.सं. ११५० में हुई और मुनि सोमचन्द्र नाम रखा गया । ___ खंभात में अथवा अजारी (जि. सिरोही-राजस्थान) में सरस्वती ने प्रत्यक्ष हो कर आपको वरदान दिया । किसी श्रेष्ठी के घर की कचवरराशि आपके प्रभाव से हेम सुवर्ण बन गई । इसी से आपका दूसरा नाम मुनि हेमचन्द्र प्रसिद्ध हुआ ।
आप वि.सं. ११६६ में आचार्य पद से अलङ्कृत हुए । सिद्धराज जयसिंह और महाराजा कुमारपाल आपके परम भक्त थे । सिद्धराज की प्रार्थना से आपने 'सिद्ध-हेम' व्याकरण शास्त्र की रचना की । महाराजा कुमारपाल आपके ही आशीर्वाद से वि.सं. ११९९ में गुजरात राज्य के अधिपति हुए और आपके उपदेश से उन्होंने वि.सं. १२०८ में 'अमारि' प्रवर्तन करवाया । वि.सं. १२१३ में आपने मन्त्री बाहड द्वारा श्री शत्रुञ्जय तीर्थोद्धार की प्रतिष्ठा करवाई।
आपके उपदेश से पैंतीश हजार जैनेतर कुटुम्बों ने जैन धर्म स्वीकार किया था । आपकी अपूर्व विद्वत्ता और उपदेशशक्ति से प्रभावित होकर विद्वानों ने आपको 'कलिकालसर्वज्ञ' का बिरुद दिया था ।
वि.सं. १२१९ में आ० श्री रामचन्द्रसूरि को अपने पट्ट पर स्थापित कर आप स्वर्ग सिधार गये । आपकी साहित्यरचना मुख्यतया निम्न प्रकार है :
सिद्धहेमव्याकरण मूल एवं लघु वृत्ति, बृहद्वृत्ति और बृहन्न्यास इत्यादि विवरणों सहित । अभिधानचिन्तामणिकोश, अनेकार्थ संग्रह, निघंटु कोश, देशीनाममाला, काव्यानुशासन, छंदोनुशासन, प्रमाणमीमांसा, बलाबलवादनिर्णय, योगशास्त्र इत्यादि मूल और इन्हीं ग्रन्थों की टीकाएँ ; द्वयाश्रय महाकाव्य, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, परिशिष्ट पर्व, सकलार्हत्स्तोत्र, अयोगव्यवच्छेदिका, अन्ययोगव्यवच्छेदिका, वीतरागस्तोत्र, महादेवस्तोत्र, द्विजवदनचपेटिका, सप्ततत्त्वविचारणा इत्यादि ।