Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 71
________________ आचार्य श्री सर्वदवसूरि द्वितीय (3८ वें पट्टधर) आ० श्री देवसूरि के पट्टधर आ० श्री सर्वदेवसूरि द्वितीय हुए । इन्होंने यशोभद्र नेमिचन्द्र आदि शिष्यों को आचार्य पद पर वि.सं. ११२९ और ११३९ के बीच प्रतिष्ठित किया । मलधारी आ. श्री हेमचन्द्रसूरि मलधारी आ० श्री अभयदेवसूरि के शिष्य आ० श्री हेमचन्द्रसूरि हुए । ये पूर्वपर्याय से महामन्त्री प्रद्युम्न थे । आ० श्री अभयदेवसूरि के उपदेश से मन्त्रिपद का त्याग कर साधु पद का स्वीकार किया । शास्त्रों का अध्ययन कर आप आचार्य पद पर आरुढ हुए । राजा सिद्धराज जयसिंह आपका परम भक्त था । आपके उपदेश से इस राजा ने अनेक जिनमन्दिरों पर सुवर्ण-कलश चढाये और प्रतिवर्ष ८० दिनों का अमारि प्रवर्तन करवाया था। आपकी ग्रन्थरचनाएँ निम्न लिखित है - आवश्यक-टिप्पणक, शतक कर्मग्रन्थ विवरण, अनुयोगद्वार सूत्रविवरण, उपदेशमाला=पुष्पमालाप्रकरणमूल स्वोपज्ञवृत्तिसहित, जीवसमासविवरण वि.सं. ११६४ में, भवभावनामूल और स्वोपज्ञवृत्ति, नन्दिसूत्र टिप्पण और विशेषावश्यक बृहद्वृत्ति । ___पाटण में सात दिन का अनशन कर आप स्वर्गवासी हुए । आपके अनेक शिष्य हुए । उनमें से (१) आ० श्री विजयसिंहसूरि ने वि.सं. ११९१ में आ० श्री कृष्णर्षि के शिष्य आ० श्री जयसिंह रचित 'धर्मोपदेशमाला' गाथा ९८ का विवरणग्रन्थ १४४७१ श्लोकप्रमाण रचा । (२-३) आ० श्री चन्द्रसूरि और आ० श्री विबुधचन्द्रसूरि ये दोनों पूर्व पर्याय से सिद्धराज जयसिंह के लाट देश के मन्त्री थे । (४) प० लक्ष्मणगणी ने वि.सं. ११९९ में 'सुपासनाहचरियं' १०००० गाथा प्रमाण रचा । (६१)

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