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आपके पास आ. श्री मुनिचन्द्रसूरि (४० वें पट्टधर) ने षड्दर्शन का अध्ययन किया था। आपश्री ने ४१५ राजकुमारों को उपदेश देकर जैन बनाया था। आपकी ग्रन्थरचना निम्न प्रकार है :- (१) श्री उत्तराध्ययनसूत्र की बृहद्वृत्ति, (२) जीवविचार प्रकरण, (३) धर्म- रत्नप्रकरण, (४) संघाचार चैत्यवंदनभाष्य अपर नाम 'संघसमाचारभाष्य, (५) अर्हदभिषेकविधि अपर नाम पर्वपंजिका जिसका सातवाँ पर्व 'बृहत् शान्ति' है, इत्यादि।
___ आपके व्याख्यान में 'नागिनी' देवी आया करती थी। वि.सं. १०९६ में गिरनार-तीर्थ में पच्चीस दिन का अनशन कर आप स्वर्गवासी हुए।
विमलमन्त्री और विमलवसही
(आबू-देलवाडा तीर्थ) विमलमन्त्री कुशल धनुर्धर और गुजरात के राजा भीमदेव (वि.सं. १०७८११२०) के सेनापति थे । पाटण से चन्द्रावती आकर रहने लगे तब विद्याधर गच्छकी जालीहर शाखा के आ० श्री धर्मघोषसूरि के प्रवचनों से प्रभावित होकर युद्धों में लगे पापों का प्रायश्चित करना चाहा । आचार्य श्री ने प्रायश्चित में आबू तीर्थ का उद्धार कराने को कहा।
आचार्य श्री के आदेश से मन्त्रिराज ने आराधना कर अंबिका देवी को प्रत्यक्ष किया। जब देवी ने वर मांगने को कहा तब मन्त्री ने पुत्र की प्राप्ति और आबू तीर्थ के उद्धार के वर मांगे । देवी ने कहा-दो में से एक इच्छा पूर्ण हो सकेगी। मन्त्रिराज ने तनिक सोचकर आबू तीर्थ के उद्धार का वर मांगा। देवी 'तथास्तु' कहकर अन्तर्धान हो गई।
कुछ ही समय में १८,५३,००,००० रुपयों के व्यय से अद्भुत कलाकृति से युक्त ५४ देवकुलिका वाला मन्दिर बन गया, जिसकी प्रतिष्ठा वि.सं. १०८८ में हुई। इन मन्दिरों के कारण ही आबू विश्वविख्यात है।
आचार्य श्री द्रोणाचार्य आचार्य श्री द्रोणाचार्य पूर्व पर्याय से नाडोल के चौहान राजवंशी और गुजरात के राजा भीमदेव (१०७८-११२०) के मामा थे । आप विद्वत्ता और त्याग की मूर्ति थे । आपने 'ओघनियुक्ति' की टीका रची तथा आ० श्री अभयदेवसूरि द्वारा रचित नवांगी टीकाओं का संशोधन किया । आपका समय अनुमानतः वि.सं. १०६० से ११४५ है । आपने अनेक चौहान और सोलंकियों को जैन बनाया।
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