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नौ नन्दों का राज्यकाल नन्दिवर्धन, महानन्दि, महानन्द, सुमाली, बृहस्पति, धननन्द, बृहद्रथ, सुदेव और महापद्म इन नौ नन्दों का राज्यकाल अनुक्रम से ३२, १८, ३७, ७, ३, ४, १०, ६ और ३३ वर्ष का रहा । इस प्रकार वी.नि.सं. ६० से लगाकर २१० तक कुल १५० वर्ष तक नन्द वंश मगध की राजगद्दी पर रहा। - नौवें नन्द को हराकर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को पाटलीपुत्र की राजगद्दी पर बैठाया । इस तरह नन्द वंश का अन्त हुआ।
श्री प्रभवस्वामी (तृतीय पट्टधर) जम्बस्वामी के पट्ट पर वी.नि.सं. ६४ में श्री प्रभवस्वामी आये । ३० वर्ष की अवस्था में दीक्षा लेकर ४४ वर्ष तक व्रतपर्याय में रहे और ११ वर्ष तक युगप्रधान पद पर रहे।
अपने पट्ट पर स्थापना के लिए संघ में योग्य व्यक्ति न मिलने पर अपने ज्ञान से अन्य दर्शनियों में तलाश करने लगे । उस समय राजगृह नगर में यज्ञ करते हुए शय्यंभव नाम के भट्ट को ज्ञान से देखा । उसी समय दो साधु भगवन्तों को यज्ञशाला में भेजकर "अहो ! कष्ट, अहो ! कष्ट, तत्त्व तो दीखता नहीं है।" इस प्रकार का वचन शय्यंभव को सुनाया।
यह वचन सुनते ही शय्यंभव ने तलवार को म्यान से निकालकर यज्ञ कराने वाले अपने ब्राह्मण गुरु को डराते हुए पूछा- तत्त्व क्या है ? तब ब्राह्मण गुरु ने यज्ञ के खंभे के नीचे रही श्री शांतिनाथ भगवान् की प्रतिमा को बताते हुए कहा- 'यही तत्त्व है' । प्रतिमा के दर्शन मात्र से शय्यंभव को प्रतिबोध हो गया और वे प्रभवस्वामी के पास जाकर उनके शिष्य बने ।
प्रभवस्वामी योग्य शिष्य श्री शय्यंभव को अपने पट्ट पर स्थापित कर ८५ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर वी.नि.सं. ७५ में स्वर्गवासी हुए।
श्री रत्नप्रभसूरि प्रभवस्वामी के समय में अर्थात् वी.नि.सं. ७० के आसपास श्री पार्श्वनाथ भगवान के छठे पट्ट पर श्री रत्नप्रभसूरि नाम के आचार्य हुए। इन्होंने १,८०,००० क्षत्रियपुत्रों को उपदेश देकर जैन बनाया । वी.नि.सं. ७० माघ शु. ५ को इन्होंने एक ही साथ ओसीया और कोरंट में महावीर स्वामी की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की।
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