Book Title: Jain Itihas
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 44
________________ राजसभा के आप चमकते सितारे रहे । कादंबरी और हर्षचरित के रचयिता कवि बाण तथा सूर्यशतक के रचयिता कवि मयूर आपके समकालीन हुए। ___ गोविन्द वाचक गोविन्द वाचक पूर्व में कट्टर बौद्ध और प्रकाण्ड वादी थे । जैनाचार्यों के साथ बाद में अनेक बार हार जाने से इनके मन में एक विचार सूझा- 'एक बार जैन आगमों को अच्छी तरह पढ लूँ, ताकि बाद में इनका खंडन कर सकूँ।' इस विचार से कपटपूर्वक जैनी दीक्षा ली। आरंभ में आचाराङ्ग के प्रथम अध्ययन के वनस्पति उद्देशक का अध्ययन करते-करते इनका मिथ्यात्व नष्ट हो गया और ये सच्चे जैन साधु बने । क्रमशः श्रुत के पारगामी हुए और आपने वाचक पद पाया । आपकी विद्यमानता वी.स. ९०० के बाद भी थी। कलचुरी अपरनाम चेदी संवत्सरप्रवर्तन जुन्नेर (महाराष्ट्र) के पास त्रिकुट नगर के राजा ईश्वरदत्त ने सौराष्ट्र पर विजय पायी, और वी.सं. ७७५ वि.सं. ३०५ (२६-८-२४९) से त्रैकुठक संवत्सर चलाया जो कलचुरी और चेदी भी कहलाता है। गुप्तसाम्राज्य की स्थापना और संवत्सरप्रवर्तन गुप्त वंश विक्रम की चौथी सदी के अन्तिम चरण में मध्य भारत की सत्ता पर आया । चन्द्रगुप्त प्रथम ने वी.सं. ८४६ वि.सं. ३७६ कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से गुप्त संवत्सर चलाया । वल्लभी संवत्सरप्रवर्तन गुप्त संवत्सर के साथ वल्लभी संवत्सर का प्रवर्तन वल्लभी नगर की स्थापना के अवसर पर राजा आद्य शिलादित्य ने किया। अतः गुप्तसंवत्सर का दूसरा नाम वल्लभीसंवत्सर है। गुप्तवंश के राजा चन्द्रगुप्त प्रथम का राज्यकाल १४ वर्ष का रहा । उसके पुत्र समुद्रगुप्त ने पूरे भारत पर विजय पायी । समुद्रगुप्त के बाद उसका बडा लडका रामगुप्त राजगद्दी पर आया । म्लेच्छों ने उसे कैद कर दिया । वह किसी तरह मुक्त हुआ । पश्चात् (३४)

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