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भगवान् आदिनाथ की प्रतिष्ठा करवाई थी।
मेवाड राज्य की स्थापना के साथ वहाँ के राजवंश की यह एक व्यवस्था बन गई थी कि मेवाड में जहाँ नये किल्लो का निर्माण हो वहाँ भगवान् आदिनाथ के मन्दिर का निर्माण होता था ।
आचार्य श्री ननसूरि आचार्य श्री नन्नसूरि पूर्व पर्याय से तलवाडा के राजा थे । एक दिन शिकार में गर्भवती हरिणी विंध गई । हरिणी के तडफते हुए गर्भ को देखकर आपकी आत्मा में दया उमडी और गहरा पश्चात्ताप हुआ । इसी प्रसंग से आपने वैराग्य पाकर राज्य का त्याग किया और संयम लिया । आपसे राजगच्छ निकला, जिसमें अनेक विद्वान् और वादी आचार्य हुए ।
आचार्य श्रीबप्पभट्टिसूरि और राजा आम आ० श्री बप्पभट्टिसूरि का जन्म वि.सं. ८०० में हुआ । आपके पिता का नाम बप्प और माता का भट्टि था । आपका जन्म नाम सुरपाल था । आ० श्री सिद्धसेनसूरि के हाथों से आपकी दीक्षा वि.स. ८०७ में हुई । माता-पिता की स्मृति में दीक्षित अवस्था का आपका नाम बप्पभट्टि रखा गया । आपकी बुद्धि तेज थी । एक बार पढने या सुनने मात्र से ही कठिन श्लोक भी कंठस्थ हो जाता था । आप प्रतिदिन एक हजार श्लोक कंठस्थ कर लेते थे । आपसे आम राजा का मेलाप कुमारावस्था में हुआ था । आप आचार्य पद पर वि.स. ८११ में आरुढ हुए थे । इसी समय आपने संयम रक्षा के लिए जीवन भर छ विगइयों का त्याग किया था । आप निर्मल ब्रह्मचर्य के स्वामी और अजेय वादी थे, अतः आम राजा ने आपको 'बालब्रह्मचारी' और 'गजवर' के बिरुदों से सन्माना था ।
आपके उपदेश से आम राजा ने कन्नोज में १०१ हाथ ऊँचा जिनालय बनवाकर उसमें भगवान् महावीरस्वामी की सुवर्णमयी प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई थी। ग्वालियर के किल्ले में भी एक भव्य जिनालय बनवाया था।
दिगम्बर जुनागढ के रा'खेंगार को प्रसन्न कर गिरनार तीर्थ को दबा बैठे थे । इसी समय आपके सान्निध्य में आम राजा का संघ गिरनार पहुँचा तो दिगम्बर आचार्य, श्रावक और ११ राजा भी बडे सैन्य के साथ वहाँ आ पहुँचे और संघ को