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आचार्य श्री देवगुप्त
आचार्य श्री देवगुप्त पूर्व पर्याय से मालवा के गुप्तवंशी राजा थे । युद्ध में राजा राज्यवर्धन से पराजित होने पर वैराग्यवासित हो कर आपने आचार्य श्री हरिगुप्त के पास दीक्षा ली थी । राजवंशों पर आपका पूर्ण प्रभाव था । आप महाकवि थे । 'त्रिपुरुषचरित' आपकी रचना है ।
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आचार्य श्री जिनभद्रक्षमाश्रमण
आचार्य श्री जिनभद्रक्षमाश्रमण का युगप्रधान काल वी. नि. १०५५ से १९१५ है। आप समर्थ विद्वान् और व्याख्याता हुए। आपकी कृतियाँ - विशेषावश्यक भाष्य, सभाष्य जीतकल्प, विशेषणवती, बृहत्संग्रहणी, बृहत् क्षेत्रसमास, ध्यानशतक, निशीथभाष्य हैं । आपके शिष्य श्री शीलाङ्काचार्य ने आचारांग और सूयगडांग टीकाऐं लिखी ।
आचार्य श्री स्वाति
आचार्य श्री स्वाति का युगप्रधानकाल वी. नि. १९१५ से १९९० का है । इनके लिए विद्वान् अलग-अलग संभावनाएँ करते हैं । किसीके मत से तत्त्वार्थसूत्र, प्रशमरति, पूजाप्रकरण, श्रावकप्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थों के रचयिता हैं । दूसरों के मत से पूर्णिमा से चतुर्दशी की पक्खी - व्यवस्था करने वाले ये हैं । इसी तरह पश्चाद्वर्ती युगप्रधानों का संवाद नहीं मिलने से ग्रन्थकारों ने संभावनाओं का आश्रय लिया है । अतः युगप्रधानों के इतिहास को यहीं समाप्त कर अब आगे पट्टधर और प्रभावक आचार्यो के बारे में पढेंगे ।
आचार्य श्री मल्लवादी
आचार्य श्री मल्लवादी बडे प्रभावक आचार्य हुए। ये प्रकाण्ड विद्वान् थे । सरस्वती का अनेक बार आपको साक्षात्कार हुआ था । भरुच की राजसभा में वी.नि. ८८४ में बौद्धों को आपने हराया था । 'नयचक्र' ग्रन्थ आपकी विशिष्ट रचना है । वल्लभी का राजा आद्य शिलादित्य, जो बौद्ध था, उसको आपने जैन बनाया था । इसी शिलादित्य ने शत्रुञ्जय तीर्थ का उद्धार कराया था ।
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