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वल्लभी का नाश पाली (राजस्थान) का गरीब वणिक् काकु वल्लभी में आकर सिद्धरस और चिंत्रावेली के प्रभाव से अतीव समृद्ध हो गया । एक दिन राजा ने काकु की पुत्री की रत्नजडित कंधी बलात् छीन ली । इस अपमान का बदला लेने के लिए काकु ने म्लेच्छसैन्य लाकर राजा और वल्लभी का नाश करवाया । बाद में म्लेच्छसैन्य को भी रणप्रदेश में भटका दिया। इस तरह वल्लभी का नाश हुआ और काकु भी अन्त में नरक का अतिथि हुआ।
मैत्रकवंश अपरनाम सेनापतिवंश की उत्पत्ति आद्य शिलादित्य किसी ब्राह्मण की विधवा पुत्री से जन्मा था । बाल्यकाल से ही इसे सूर्य देव ने अपना लिया था । सूर्य का पर्यायवाची नाम 'मित्र' है । अत: शिलादित्य के वंशज मैत्रक कहलाये । ये मैत्रक बाद में गुप्त वंश के शासकों के सेनापति पद पर रहे, इसलिए इनका वंश सेनापतिवंश के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ।
राजा ध्रुवसेन और सभा समक्ष कल्पसूत्र का व्याख्यान
सेनापति भट्टारक गुप्त वंश की निर्बलता का लाभ लेकर वल्लभी का राजा बन बैठा । उसका पुत्र ध्रुवसेन वी.स. ९७५ में वल्लभी की राजगद्दी पर आया । यह जैन था । कुमारभुक्ति नगर आनन्दपुर में युवराज की मृत्युनिमित्तक राजा ध्रुवसेन के शोक के निवारण हेतु कल्पसूत्र का व्याख्यान सभा के समक्ष प्रवृत्त हुआ ।
श्री कुलपाद्ध तीर्थ पदामोदराबाद में ७५ किलोमीटर दूर श्री कुलपाक तीर्थ है । उसका दूसरा नाम माणिक्य स्वामी है । मूलनायक श्री ऋषभदेव की माणिक्य की यह प्रतिमा भरत चक्रवर्ती की अंगूठी में प्रतिष्ठित थी । कालक्रम से यह प्रतिमा लंका में रावण और मन्दोदरी द्वारा पूजी गई । लंका का विनाश हुआ तब मन्दोदरी ने इसे समुद्र में प्रतिष्ठित कर दी, जहाँ देवों द्वारा पूजी जाती थी।
कल्याणी के राजा शंकरगण ने अपने नगर में मारी के उपद्रव की शान्ति के लिए लवण समुद्र के अधिपति सुस्थित देव की आराधना कर उससे यह प्रतिमा
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