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संप्रति ने पाटलीपुत्र में आपने अनेक शत्रु है ऐसा जानकर पाटलीपुत्र का त्याग किया और अवन्ती में आकर सुख से राज करने लगा। ___ यह भी अशोक की तरह बडा पराक्रमी था । नेपाल, तिब्बट, खोटान और ग्रीस देश के भूभाग को अपने अधीन किया था । .... संप्रति के सिक्के जो मिल रहे हैं, उनके एक तरफ सम्प्रति और दूसरी तरफ स्वस्तिक, रत्नत्रयी और मोक्ष के प्रतीक संप्रति के जैन होने की साक्षी दे रहे हैं ।
चीन की दीवाल महाराजा संप्रति के तिब्बत, खोटान आदि प्रदेशों की विजय से डरकर चीनी सम्राट् सीबुवांग ने वी.नि. ३१२ ई.स. २१४ में इस दीवाल को खिंचवाया । यह दीवार विश्व का एक आश्चर्य है।
पाँचवाँ निहव द्विक्रियावादी वी.नि.सं. ३२८ में उल्लुका नदी के पश्चिम तट पर स्थित नगर में आर्य महागिरि के शिष्य आचार्य धनगुप्त ठहरे हुए थे । आचार्य धनगुप्त के शिष्य आचार्य गंग पूर्वी तट पर स्थित नगर ठहरे हुए थे।
शरत्काल में आचार्य गंग अपने गुरु को वंदन करने जा रहे थे । वे सिर में गंजे थे । नदी उतरते सिर धूप से जलता था, तब नीचे पाँवों में शीतलता का अनुभव होता था।
गंग सोचने लगे- सत्रों में कहा है कि एक समय में एक क्रिया का ज्ञान होता है शीत स्पर्श अथवा उष्ण स्पर्श का, पर मुझे तो दो क्रियाओं का अनुभव हो रहा है। अतः एक समय में एक नहीं, दो क्रियाओं का वेदन होता है ।
इस विचार को उन्होंने जब गुरु के सामने रखा तब गुरु ने कहा- एक समय में दो क्रियाओं का वेदन नहीं होता है, तथा पि समय और मन अतीव सूक्ष्म होने के कारण समय भिन्न-भिन्न होते हुए भी स्थूल बुद्धि से उनकी भिन्नता मालूम नहीं होता इत्यादि समझाने पर भी मिथ्यात्व के उदय से न समझा तब श्रमणसंघ से अलग कर दिया गया।
पश्चात् नाग जाति के एक देव 'नागमणि' के चैत्य के समीप गंग जब अपने विचार सभा के सामने रख रहे थे तब देवने कहा- अरे दुष्ट ! असत्य उपदेश क्यों दे रहा है ! इसी स्थान पर भगवान् वर्धमान स्वामी ने कहा था- एक समय में एक ही का अनुभव होता है । क्या तू उनसे भी बढकर हो गया ? इत्यादि समझाने पर उसने गुरु के पास जाकर क्षमा मांगना स्वीकार किया।
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