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पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रसंग से राजवंशों का भी उल्लेख करेंगे । नौवें नंद के राज्यकाल में सिकन्दर ने वी.नि. २०१, ई.पू. ३२५ में सिंधु नदी को पार कर राजा पुरु के साथ भयंकर युद्ध किया । इतिहासकारों के मत से वी.नि. २०४ ई.पू. ३२२ में पाटलीपुत्र राजगद्दी पर चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्याभिषेक हुआ । मौर्य और मौर्य संवत् का प्रारम्भ यही से हुआ ।
मौर्य वंश और चन्द्रगुप्त मौर्य मौर्य वंश का आदि पुरुष चन्द्रगुप्त मौर्य राज्य के प्रारंभ काल में बौद्ध धर्म का अनुयायी रहा । बाद में चाणक्य मंत्री ने उसे जैन धर्म का दृढ अनुरागी बनाया ।
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य अत्यन्त पराक्रमी था । उसने सिकन्दर के सेनापति और बाद में यूनान के राजा सेल्युकस को सन्धि के लिए बाधित किया । चन्द्रगुप्त की सहायता से ही सेल्युकस ने अन्टिगोन्स को हराया था । चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया । वी.नि. २२८ में चन्द्रगुप्त स्वर्ग सिधार गया। यूनानी राजदूत मेगस्थनीज इसी चन्द्रगुप्त की राजसभा में उपस्थित रहता था।
मन्त्री चाणक्य चाणक्य जन्म से ब्राह्मण होने पर भी जैन धर्म का उपासक था । एक बार नौवें नन्द से अपमानित होने पर इसने नन्द वंश का निकन्दन करने की प्रतिज्ञा की। बाद में नन्द राजा पर विजय पायी और मगध की राजगद्दी पर चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक किया । स्वयं मन्त्री बनकर मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया । यह बडा नीति-निपुण था । इसके ग्रन्थ चाणक्यनीति, कौटिल्य अर्थशास्त्र वगैरह आज भी इतने ही प्रसिद्ध है । वह अन्त में अनशन कर स्वर्गवासी हुआ ।
बिन्दुसार चन्द्रगुप्त का पुत्र बिन्दुसार राजगद्दी पर आया । यह दृढ जैनधर्मी था । इसका राज्यकाल वी.नि. २२८ से वी.नि. २५६ तक २८ वर्ष का रहा।
सम्राट अशोक बिन्दुसार के बाद उसका पुत्र अशोक राजगद्दी पर आया । राज्य के आरम्भकाल में यह जैन मतावलंबी था । राज्यप्राप्ति के चार साल बाद यह बौद्ध धर्म का अनुयायी बना और 'प्रियदर्शन' इस दूसरे नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
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