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के प्रति मैत्री और भौतिक पदार्थों के प्रति वैराग्य धारण करने को कहा । आत्म शुद्धि के संकल्पपूर्वक अहिंसा, संयम और तपोमय धर्म के पालन का उपदेश दिया । सत्य और न्यायपूर्वक जीवन जीने को कहा।
पदार्थ के स्वरूप को अनेक दृष्टिकोणों से जानने और मानने रूप अनेकान्तदर्शन की अनुपम देन दी । परम शान्ति के लिए ममता के त्यागरूप अपरिग्रह का उपदेश दिया। ___ भगवान के इस अनुपम उपदेश को पाकर अनेक राजा, महाराजा, राजकुमार, राजकुमारियाँ, श्रेष्ठी, श्रेष्ठिपुत्र आदि प्रभु के संघ में सम्मिलित हुए । इस प्रकार अनेक आत्माएँ संसार के दुःखों से मुक्त हुई और अनेक आत्माएँ मुक्ति के पथ पर अग्रसर हुई।
आगामी चौबीसी में तीर्थकर होने वाली आत्माएँ। इन मुक्ति के पथ पर अग्रसर होने वाली आत्माओं में नौ आत्माएँ ऐसी है जो आगामी चौबीसी में इसी भरत क्षेत्र में तीर्थंकर होकर मुक्त होंगी। वे ये हैं -
(१) महाराजा श्रेणिक-बिंबिसार (२) प्रभु महावीर के चाचा श्री सुपार्श्व (३) महाराजा कोणिक के पुत्र श्री उदायी राजा (४) पोट्टिल साधु (५) दृढायु श्रावक (६) शंख श्रावक (७) शतक श्रावक (८) सुलसा श्राविका और (९) रेवती श्राविका
निर्वाण-प्राप्ति इस प्रकार ३० वर्ष गृहवास, १२ वर्ष साधनाकाल और ३० वर्ष केवली अवस्था में रहकर ७२ वर्ष की आयु में प्रभु पावापुरी में विक्रम संवत् पूर्व ४७० वर्ष और ईसवी सन् ५२७ वर्ष पूर्व कार्तिक मास की अमावस्या को निर्वाण-प्राप्त हुए । इसी समय राष्ट्रकार्य से आये हुए नौ लिच्छवी और नौ मल्लकी राजाओं ने प्रभु के निर्वाण होने पर भाव उद्योत के चले जाने से द्रव्य उद्योत करने के लिए दीप प्रगटाए । तभी से दीपावली पर्व प्रवृत्त हुआ। भगवान् के समय में अन्य धर्माचार्य
श्री केशी गणधर उस समय श्री पार्श्वनाथ के सन्तानीय श्रमण भी विद्यमान थे । उनमें मुख्य श्री केशी गणधर थे, जो श्रावस्ती नगरी में श्री इन्द्रभूति गौतम से मिले थे । ज्ञानी होने पर भी इन दोनों ने अपने शिष्यों की शंकाओं के समाधान हेतु तत्त्व-चर्चा की । चर्चा के अन्त में श्री केशी गणधर प्रभु महावीर के संघ में सम्मिलित हो गये थे । श्री केशी गणधर की शिष्यपरंपरा 'उपकेश' गच्छ के नाम से चली।