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इसी समय (१) गौतम बुद्ध (२) पूरण काश्यप (३) गोशालक आदि धर्म के संस्थापक हुए । गौतम बुद्ध से बौद्ध धर्म प्रवृत्त हुआ । बौद्धों के धर्मशास्त्र त्रिपिटकों में भगवान् महावीर स्वामी का निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र के नाम से उल्लेख कई जगहों पर है ।
गोशालक किसी ब्राह्मण की गोशाला में जन्मे थे अतः गोशालक के नाम से प्रसिद्ध हुए । इन्होंने भगवान् महावीर स्वामी के पास शिष्य की तरह रहकर तेजोलेश्या की विधि सीखी तथा कहीं से अष्टाङ्गनिमित्त सीखकर स्वयं को सर्वज्ञ घोषित कर 'आजीवक' नाम का नया मत चलाया । भगवान् महावीर स्वामी के कैवल्य उत्पत्ति के चौदहवें वर्ष में श्रावस्ती नगरी में गोशालक ने भगवान् पर तेजोलेश्या छोडी परन्तु वह भगवान् की प्रदक्षिणा देकर गोशालक के शरीर में प्रविष्ट हो गई जिससे सातवें दिन उनकी मृत्यु हुई । इस प्रसंग से गोशालक के बहुत से श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के धर्मशासन में शामिल हो गये ।
पूरण काश्यप आदि स्वतंत्र धर्मसंस्थापक थे । इनके विषय में ज्यादा जानकारी नहीं मिल रही है ।
महाराजा श्रेणिक ( बिंबिसार)
इस समय महाराजा श्रेणिक मगध के सम्राट् थे । इन्होंने अपने पुत्र और महामंत्री अभयकुमार के बुद्धिबल से मगध साम्राज्य को सुदृढ किया था । ये प्रभु महावीर स्वामी के परम भक्त थे । इन्होंने अपने अनेक रानियों को एवं मेघकुमार, नन्दिसेन वगैरह राजकुमारों को जैनी दीक्षा दिलाई थी । इसी भक्ति के प्रभाव से ये आगामी चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर होने वाले है ।
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महाराजा कोणिक (अजातशत्रु - अशोकचन्द्र)
अभयकुमार की दीक्षा के बाद राजकुमार कोणिक ने राज्य के लोभ से श्रेणिक को कैद कर दिया और स्वयं मगध के सिंहासन पर बैठ गया । अपनी माता चेल्लणा के उपालम्भ से पिता को मुक्त करने के लिए स्वयं हाथ में कुल्हाडी लेकर जेल की • तरफ दौडा । इस तरह कोणिक को अपने समीप आते देखकर श्रेणिक महाराजा ने समझा कि यह मुझे मारने आ रहा है । अतः पुत्र को पिता की हत्या के पाप से बचाने के लिए श्रेणिक महाराज ने स्वयं हीरा चूसकर मृत्यु पा ली ।
इस प्रसंग से कोणिक को बडा आघात लगा । राजगृही से उसका मन ऊब गया । राजधानी को यहाँ से उठाकर चम्पा में ले गया । बौद्धभक्त मिटकर वह भगवान् महावीर स्वामी का परम भक्त बन गया । चम्पापुरी में भगवान् महावीर
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