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की प्रतिक्रिया रूप होता है। ऐसी घटनाओं में किसी प्रियजन की मृत्यु, नौकरी छूट जाना, व्यवसाय में घाटा होना, परीक्षा में असफल होना आदि प्रमुख है | 28
तनाव की उपरोक्त सभी परिभाषाओं में व्यक्ति का दैहिक पक्ष प्रमुख रहा हुआ है और इन लोगों ने तनाव को एक दैहिक या आंगिक परिवर्तन के रूप में ही देखा है ।
तनाव की मनोदैहिक परिभाषाएँ :
तनाव एक मानसिक पीड़ा है, जिसके कारण शरीर के रसायनों में नकारात्मक परिवर्तन होता है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि शरीर में होने वाले रसायन परिवर्तन से तनाव उत्पन्न होता है। तनाव शरीर की उत्तेजना है, जिससे व्यक्ति कमजोर या बीमार होता है । किन्तु अगर तनाव का मात्र शरीर से ही सम्बन्ध होता तो व्यक्ति का तनाव मुक्त होना भी तो शरीर विशेषज्ञों के हाथ में होता, किन्तु सत्य यह है कि तनाव एक मनोदैहिक अवस्था है ।
यह सच है कि तनाव से व्यक्ति के शारीरिक रसायनों में परिवर्तन होता है, किन्तु तनाव एक ऐसी मानसिक संवदेना है, जो हमारे दैहिक तंत्र को प्रभावित करती है । उत्तराध्ययनसूत्र में दैहिक दुःखों के अतिरिक्त मानसिक दुःखों का भी उल्लेख मिलता है । 29
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भावनात्मक क्रियाओं का असर व्यक्ति के मस्तिष्क पर पड़ता है और उसी से ही कई बीमारियां शरीर में जन्म लेती हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि मानसिक तनाव से ही शारीरिक तनाव उत्पन्न होता है । हमारा जीवन आसान एवं तनावमुक्त होता अगर हमारी हर इच्छा या आकांक्षा अपने आप पूरी हो जाती । किन्तु उन्हे पूरा करने में हमें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। जब हमारी इच्छाओं की पूर्ति में कठिनाई आती हैं या हम उन्हें पूरा करने में सफल
28 व्यक्तित्व का मनोविज्ञान
29 उत्तराध्ययन सूत्र -19/45
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अरूण व आशीष सिंह पृ. 402
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